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का भाव पैदा होगा। मैं मानता हूं, जब तक समाज और राष्ट्र में नैतिक जागरण नहीं होगा, तब तक भले पचीस पंचवर्षीय योजनाएं क्यों न बन जाएं, काम बनेगा नहीं।
समाज में व्यापारियों का एक वर्ग है। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि वे अपने आचरण और व्यवहार पर ध्यान दें। अपनी तुच्छ स्वार्थसिद्धि के लिए मिलावट-जैसी अनैतिक प्रवृत्तियों द्वारा वे लाखों-करोड़ों लोगों का अहित न करें, उनके स्वास्थ्य एवं जीवन के साथ खिलवाड़ न करें। उनके व्यावसायिक आचरण में नैतिकता, प्रामाणिकता, ईमानदारी और सचाई होनी चाहिए। इसी प्रकार राज्यकर्मचारियों का भी एक बड़ा वर्ग है। उन्हें भी अपने आचरण और व्यवहार की तटस्थ समीक्षा करनी चाहिए कि कहीं जनता और सरकार को धोखा तो नहीं दे रहे हैं; अपने कर्तव्य के प्रति कहां तक जागरूक हैं, अपने अधिकारों का दुरुपयोग तो नहीं कर रहे हैं, रिश्वत तो नहीं लेते हैं; अन्याय तो नहीं करते हैं......"यदि वे इन बुराइयों में फंसे हैं तो उन्हें अपना व्यवहार और आचरण बदलने की दृष्टि से गंभीरता से सोचना चाहिए।
अणुव्रत-आंदोलन जीवन-शुद्धि का आंदोलन है। वह सभी स्तरों पर समाज में सुधार चाहता है। इसलिए व्यापारियों, राज्यकर्मचारियों की तरह ही किसान, मजदूर, विद्यार्थी आदि समाज के सभी वर्गों के लोगों को आह्वान करता हूं कि वे अपना जीवन बुराइयों से मुक्त बनाएं, नैतिक मूल्यों के सांचे में ढालें। इस आंदोलन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जाति, संप्रदाय आदि का कोई भेद नहीं है। सभी लोग समान रूप से इसे अपना सकते हैं। मुझे यह कहते हुए अत्यंत प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है कि सभी तरह के लोगों में इसके प्रति गहरी निष्ठा देखी जा रही है। स्वस्थ समाज
अणुव्रत-आंदोलन का मूल तत्त्व संयम है। वह व्यक्ति के चिंतन, व्यवहार और वृत्ति को संयमप्रधान बनाकर जीवन-निर्माण का कार्य करना चाहता है। वस्तुतः संयम बहुत ही महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। उसके अभाव में जीवन जीवन नहीं होता; समाज स्वस्थ नहीं बनता। आजकल समाजवादी समाज संरचना की चर्चा व्यापक स्तर पर चल रही है। इस संदर्भ में मेरा चिंतन यह है कि उसका आधार संयम रहना चाहिए। संयम पर आधारित
अणुव्रत-आंदोलन : एक नैतिक अभियान
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