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आत्मना युद्धस्व
69 का। इनसे पदार्थ भीतर जा सकते हैं। अंगुली से पदार्थ भीतर नहीं जा सकते। अंगुली से छूकर हम जान सकेंगे कि पानी ठंडा है या गरम । पर अंगुली से पानी शरीर में प्रवेश नहीं कर सकता। केवल मुंह, नाक, कान, आदि से ही वह भीतर जा सकता है। __ अध्यात्म के अनुसार भीतर प्रवेश पाने का शक्तिशाली मार्ग है नाक के छिद्र । नाक का संबंध मस्तिष्क से जुड़ा हुआ है। मस्तिष्क की दो परतें हैं। उनमें एक परत है—एनिमल ब्रेन की, पाशविक मस्तिष्क की। इसका संबंध है नाक से। नाक एक माध्यम है मस्तिष्क के साथ संबंध स्थापित करने का। भगवान महावीर की साधना में नासाग्रध्यान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रेक्षाध्यान की प्रणाली में चैतन्य-केन्द्रों के वर्गीकरण में एक चैतन्य-केन्द्र है प्राणकेन्द्र। इसका स्थान है नासाग्र। यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। इसका तात्पर्य है कि यहां पर ६ यान केन्द्रित करते ही मस्तिष्क के साथ सूक्ष्म संपर्क स्थापित हो जाता है और तब हमारी नियंत्रण-शक्ति बढ़ जाती है। __ अपान और प्राण ये दो शक्तिशाली धाराएं हैं। इन्हीं के आधार पर जीवन टिका हुआ है। जब अपान पर प्राण का नियंत्रण होता है तब व्यक्तित्व ऊपर की ओर उठता है और जब अपान उन्मुक्त होता है, अनियंत्रित होता है तब व्यक्तित्व नीचे की ओर खिसकता जाता है। अपान का कार्यक्षेत्र है नाभि के नीचे का स्थान और प्राण का कार्यक्षेत्र है हृदय और नासाग्र के ऊपर का स्थान। प्राण का अपान पर नियंत्रण होते ही व्यक्ति ऊर्ध्वमुखी बन जाता है
और इसके अभाव में व्यक्ति की निम्नगति प्रारम्भ हो जाती है। जब नासाग्र पर ध्यान केन्द्रित होता है, प्राणकेन्द्र पर एकाग्रता सधती है तब अपने आप अपान पर प्राण का नियंत्रण स्थापित हो जाता है, अपान प्राण का वशवर्ती अनुचर हो जाता है। नासाग्र ऊर्ध्वगमन का बहुत बड़ा द्वार है। नासाग्र पर ध्यान करने के दो अर्थ हैं—एक तो है प्राणकेन्द्र पर ध्यान करना और दूसरा है प्राणकेन्द्र से गुजरने वाले श्वास पर ध्यान करना। श्वास के आगे जाने का द्वार है नाक। नासाग्र पर ध्यान करने का मतलब है प्राणकेन्द्र पर ध्यान करना। ये दोनों नियंत्रण के महत्त्वपूर्ण माध्यम हैं। जिस व्यक्ति को अपने आपसे लड़ना है, अपनी वृत्तियों पर नियन्त्रण स्थापित करना है, उसके लिए नाक को संपूर्ण रूप से समझना बहुत आवश्यक है।
आंख भी भीतर प्रवेश करने का माध्यम है। इसके माध्यम से शिर तक जाया जा सकता है। यदि ब्रह्मकेन्द्र पर ध्यान करना है तो मुंह को समझना होगा। यदि चक्षुष्केन्द्र पर ध्यान करना है तो कान को जानना होगा। सबसे
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