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________________ ३३. क्या कष्ट सहना जरूरी है? मिट्टी का एक लोंदा। उसे घड़े का आकार मिला। उसने पूछा क्या आवे में पकना जरूरी है? क्या आग की तीव्र आंच सहना जरूरी है? यदि उसे पानी या अन्य पदार्थ का आधार बनना है तो उसे आंच सहनी होगी। यदि कण-कण में बिखर जाना है तो आंच सहना आवश्यक नहीं है। यदि कलश और कुम्भ बनना है, उस आकार में उपयोगी बनना है तो तपना होगा, आंच सहनी होगी। सापेक्ष बात कही जा सकती है। मनुष्य को यदि कुछ बनना है तो कष्ट सहना होगा। कुछ विशिष्टताएं प्राप्त करनी हैं तो कष्ट सहन करना पड़ेगा। यदि कुछ बनना नहीं है तो कष्ट सहना आवश्यक नहीं है। यदि केवल मिट्टी का लोंदा मात्र रहना है तो सहना जरूरी नहीं है। यह जगत् समस्या-बहुल और दु:ख-बहुल है। आज तक इस दुनिया में ऐसा आदमी नहीं जन्मा जिसने किसी न किसी समस्या या दु:ख का सामना न किया हो। हर आदमी के जीवन में दुःख आते हैं, समस्याएं आती हैं। कमजोर आदमी न समस्याओं का और न दु:खों का सामना कर सकता है। वह रोते-रोते जीवन जीता है। कभी-कभी बीच में ही मर जाता है। पूरा जीवन जी नहीं पाता। चला जाता है जगत् से। यह दुनिया उसी को जीने देती है जो कष्टों को झेलना जानता है, सहना जानता है। सहने की क्षमता का स्रोत है प्राण-ऊर्जा । जिसकी प्राण-ऊर्जा कमजोर होती है, वह कष्टों में घबरा जाता है। वह कष्टों से टूट जाता है। प्रेक्षाध्यान का एक महत्वपूर्ण अंग है प्राण ऊर्जा को जागृत करना। यह सोई हुई है, उसे जगाना है। दीर्घश्वास-प्रेक्षा का प्रयोग प्राण-ऊर्जा को सक्रिय बनाने का प्रयोग है। हम पूरा श्वास नहीं लेते। ऑक्सीजन पूरी मात्रा में भीतर नहीं जाता। फेफड़ा निकम्मा पड़ा रहता है। उसके प्रत्येक हिस्से में श्वास नहीं पहुंचता। वह पूरा सक्रिय नहीं होता, सोया का सोया रह जाता है। जब पूरा श्वास लेते हैं तब फुफ्फुस का प्रत्येक कोष सक्रिय बन जाता है, सजीव बन जाता है। वह तब पूरी शक्ति के साथ काम करने लगता है। श्वास के साथ ऑक्सीजन जाता है, यह छोटी बात है। इससे बड़ी बात है कि प्राण का आकर्षण होता है। समूचे आकाश में प्राण के परमाणु भरे पड़े हैं। उनका हम आकर्षण करते हैं। प्राणशक्ति बढ़ती है। ऑक्सीजन पर अटक जाना, एक शरीरशास्त्री के लिए पर्याप्त हो सकता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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