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सोया मन जग जाए
परिणाम नहीं है। हम दैनंदिन के जीवन में यह अनुभव करते हैं कि अनेक स्त्री-पुरुष सुन्दर आकृति वाले होते हुए भी अच्छे नहीं लगते। उनके साथ रहने से मन बेचैन हो जाता है। आकृति सुन्दर है, पर प्रकृति असुन्दर है। जब तक प्रकृति सुन्दर नहीं होती तब तक वह स्त्री या पुरुष आपातभद्र हो सकता है, पर लम्बे समय तक भद्र नहीं रह सकता। वह प्रारम्भ में अच्छा लगता है, पर तीन दिन बाद ही उसकी खोड़ीली प्रकृति से उसके प्रति घृणा उभर आती है। आदमी प्रारम्भ में आकृति को पसन्द करता है और दीर्घकाल में प्रकृति को पसन्द करता है। यदि प्रकृति अच्छी नहीं है तो कुछ भी नहीं है। ___ घर में नई बहू आई। उसकी आकृति को देखकर घर के छोटे-बड़े सदस्यों के मन घृणा से भर गए। वह सबके द्वारा तिरस्कृत और प्रताड़ित होने लगी। पति घबराया। बहू ने धैर्य रखा। एक महीना बीता। उनके विनम्र व्यवहार, मीठी वाणी और कार्य दक्षता ने सबके मन को आकृष्ट कर डाला। घरवाले सारे वशवर्ती हो गए। सास बोली- घर में लड़की क्या आई है, देवी आ गई है। सभी प्रशंसा करने लगे। आकृति पर प्रकृति ने विजय पा ली। आकृति प्रकृति में विलीन हो गई। __ प्रारम्भ में आकृति अच्छी लगती है और दीर्घकाल में प्रकृति अच्छी लगती है। लड़की कितनी ही सुन्दर क्यों न हो, यदि दिनभर आग जलती ही रहती है, कलह मिटता ही नहीं, तो वह किसी को नहीं भाती। सब सोचते हैं, किस कर्कशा से पाला पड़ा! आपातभद्र होती है आकृति और परिणामभद्र होती है प्रकृति। सोर्ट टर्न में आकृति और लोंग टर्न में प्रकृति प्रभावित करती है। ___ आकृति भी भीतरी कारणों से आती है और प्रकृति भी भीतरी कारणों से आती है। जिसका कर्म-शरीर—सूक्ष्मतर शरीर सुन्दर होता है, उसकी प्रकृति सुन्दर होती है, भद्र होती है। कर्म-शरीर के सुन्दर होने का अर्थ है—क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष की तरंगों का कम होना। जब ये तरंगें कम होती हैं तब कर्म-शरीर सुन्दर बनता है और जब ये तरंगें अधिक उछलती हैं तब वह भद्दा बन जाता है। कर्म-शरीर भद्दा है तो भद्दी तरंगें निकल कर स्थूल शरीर को प्रभावित करेंगी। उससे आकृति भी प्रभावित होगी। प्रकृति आकृति को प्रभावित करती है। एक गुस्सेल व्यक्ति का सुन्दर चेहरा भी भद्दा दीखने लग जाएगा। उनका आभामंडल ऐसा बन जाएगा कि पास जाने वाले का मन क्लान्त होगा, ग्लानि से भर जाएगा। वहां सुख, संतोष या आनन्द कभी नहीं मिल सकेगा। केवल क्लान्ति, विरसता मिलेगी।
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