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सोया मन जग जाए जब वीतरागभाव विकसित होता है, समता की चेतना जागती है तब राग-द्वेष का चक्र टूट जाता है तब अखंड व्यक्तित्व की दिशा में चौथा चरण आगे बढ़ता है।
जैसे ही राग-द्वेष का चक्र टूटा, मूर्छा का तमस् मिटा, चेतना के आवृत करने वाले जितने व्यूह थे वे सब निष्क्रिय बन जाते हैं। किसी में वह शक्ति शेष नहीं रहती कि वह किसी को ढक सके. रोक सके।
मिथ्या दृष्टिकोण, आकर्षण, मूर्छा और राग-द्वेष—इन चारों के समाप्त होने पर पांचवीं भूमिका में चेतना सर्वथा अनावृत हो जाती है। तब प्रकाश ही प्रकाश! न कोई अवरोधक और न कोई आवरण। जो खंड-खंड थे, उनकी विभक्तता समाप्त हो जाती है। इस भूमिका में मस्तिष्कीय चेतना और नाड़ी-तंत्र की चेतना कृतकार्य हो जाती है, पूरा शरीर चैतन्यमय बन जाता है, ज्ञानमय बन जाता है। सारे माध्यम समाप्त हो जाते हैं और इनर रीएलिटी अभिव्यक्त हो जाती है।
राजसभा में दो चित्रकार आए। राजा ने उनको चित्रशाला में चित्र बनाने का काम सौंपा। दोनों को चित्रशाला की आमने-सामने की भींत पर चित्र बनाने को कहा। पुरस्कार की घोषणा भी हुई। छह मास की अवधि पूरी हुई। राजा देखने आया। एक ओर भित्तिचित्रों को देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ। सभी ने चित्रों को सराहा। चित्रकार आनन्दित हुआ। राजा दूसरे चित्रकार के कक्ष में गया। चित्र रहित भीत को देखकर राजा झुंझला उठा। राजा कुछ कहे, उससे पहले ही बीच का परदा उठा और सारी भींत चित्रों से जगमगा उठी। राजा हैरान हो गया। यह क्या? चित्रकार बोला—'राजन् ! मैंने एक भी चित्र नहीं बनाया। चित्र सारे मेरे साथी ने बनाए हैं। मैं दोहरा श्रम क्यों करता? मैंने तो मात्र भित्ति की घुटाई की है और इतनी घुटाई की कि सारी चित्रशाला इसमें प्रतिबिम्बित हो गई। सारी चित्रशाला एक हो गई, खंड-खंड नहीं रही।
जब चेतना की भी इतनी घुटाई हो जाती है तब सारी चेतना एक साथ जगमगा उठती है। सारा एकाकार हो जाता है। खंड समाप्त हो जाते हैं।
चेतना जब वीतराग बनती है तब वह अनावृत होकर अखंड बन जाती है। न राग-द्वेष और न मूर्छा। सारे दोष समाप्त हो जाते हैं। अखंड चेतना का अर्थ है—अनावृत चेतना, वीतराग चेतना। वीतराग चेतना अनावृत चेतना बनती है
और अनावृत चेतना अखंड व्यक्तित्व का निर्माण करती है। ___ धर्म की उपासना या आराधना करने वाले व्यक्ति इस भ्रम में न रहें कि इस उपासना से वे अखंड व्यक्तित्व के धनी हो गए हैं। धार्मिक का व्यक्त्वि अखंड ही होता है, यह भ्रम है। मनोविज्ञान ने अखंड व्यक्तित्व की बहुत चर्चा की है
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