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सोया मन जग जाए
२. कुछ लोग चरित्रवान् हैं, पर ज्ञानवान् नहीं हैं। ३. कुछ लोग ज्ञानवान् भी हैं और चरित्रवान् भी हैं। ४. कुछ लोग न ज्ञानवान् हैं और न चरित्रवान् हैं।
और भी अनेक भेद-प्रमेद होते हैं व्यक्तित्व के। इस विभाजन का अधार है खंड-चेतना। चेतना इतनी खंडित है कि कोई कोना कहीं और कोई कोना कहीं।
एक घुड़सवार सघन रेगिस्तान से गुजर रहा था। आंधी आई। घोड़ा चमका। घुड़सवार नीचे गिर गया। घोड़ा भाग गया। रेतीली आंधी से घुड़सवार ढक गया। आंधी थमी। उधर से दूसरा घुड़सवार आ रहा था। उसन देखा, रेत में कुछ दवा सा पड़ा है नीचे उतरा घोड़े से कुछ रेत हटाई। कुछ काली-काली सी चीज दिखी। फिर कुछ रेत और हटाई। सफेद चीज नजर आई। वह रेत हटाता रहा। अन्त में उसे मनुष्याकृति दिखाई दी। वह अभी जीवित था। सांस आ रही थी। ___ हमारी घुड़सवार चेतना भी सहारा के रेगिस्तान में दबी पड़ी है। थोडी रेत हटाने से नहीं दीखेगी। धीरे-धीरे खंड-खंड दिखाई देगा। समग्रता से उसको देखने के लिए पूरा श्रम अपेक्षित है। एक बात है, जो चेतना शरीर से प्रतिबद्ध है, वह अखंड हो ही नहीं सकती क्योंकि हमारा माध्यम है मस्तिष्क । जानने का माध्यम है मस्तिष्क या पृष्ठरज्जु । जब तक इन माध्यमों से जानते रहेंगे तब तक हमारा व्यक्तित्व खंडित रहेगा। माध्यम के बिना जानने की चेतना अखंड व्यक्तित्व का धनी नहीं हो सकता। हम केवल अखंड व्यक्तित्व का स्वप्न लेते हैं, बातें करते हैं, किन्तु राग और द्वेष मूर्छा पैदा करते हैं। जहां मूर्छा है वहां व्यक्तित्व अखंड नहीं रह सकता, खंडित हो जाता है। खंडित व्यक्तित्व का एक व्यंग्य है पत्नी ने पति से कहा, आपने कैसा नौकर रख छोड़ा है? यह तो चोर है। पति बोला, क्या हुआ? पत्नी ने कहा कल हम जिस होटल से चांदी का एक चम्मच उठाकर लाए थे, वह इसने चुरा लिया है।
यह कैसी मूर्छा! स्वयं उठाकर लाए, वह चोरी नहीं है। नौकर उठाकर ले गया, वह चोरी हो गई। ___ बस में बैठा-बैठा एक आदमी जोर से चिल्लाया, अरे! मेरी अटेची कोई चुरा कर ले गया। सब यात्री हैरान थे। सहानुभूति के स्वरों में पूछा कैसी थी अटेची? क्या-क्या था उसमें? कितने रुपये थे? वह बोला—मुझे कुछ भी पता नहीं। मैं तो उसे रेल के डिब्बे में से उठाकर लाया था और बस में कोई चुराकर ले गया। कितना खराब जमाना है।
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