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२३. चैतन्य-विकास के सोपान
मनुष्य चेतन है। पदार्थ अचेतन है। चेतन की समस्या का समाधान अचेतन नहीं कर सकता। वह समस्या के सामाधान में निमित्त बन सकता है, उपादान नहीं बन सकता। मनुष्य सामाजिक, पारिवारिक और राजनैतिक जीवन जीता है। अन्यान्य संबंधों का जीवन भी वह जीता है। उनकी समस्याएं भी अनेक प्रकार की हो जाती हैं राजनीतिक समस्या, सामाजिक समस्या, पारिवारिक समस्या, आर्थिक और धार्मिक समस्या आदि-आदि। वह अनेक प्रकार की समस्याओं से घिर जाता है। इन सब समस्याओं का समाधान किसी एक से किया जाए, यह संभव नहीं है। राजनीतिक समस्या का समाधान राजनीति के स्तर पर, आर्थिक समस्या का समाधान आर्थिक स्तर पर और धार्मिक समस्या का समाधान धार्मिक स्तर पर खोजना होता है। यदि चैतसिक समस्या है तो उसका समाधान अपने भीतर खोजना होगा। समस्याएं अनेक हैं तो उनके समाधान-सूत्र भी अनेक हैं। ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो सब समस्याओं का एक साथ समाधान कर सके या एक ही उपाय से सबको समाहित कर सके।
इस बिन्दु पर व्यक्ति को विभज्यवाद का सहारा लेना होगा। विभज्यवाद का अर्थ है हर समस्या को विश्लेषित करके देखो, समस्याओं को मिलाओ मत। समस्या के समाधान में मिश्रण वाली बात बाधक बनती है। समस्या को अलग-अलग कोण से देखना होता है, सोचना होता है। अध्यात्म का काम है—आंतरिक समस्याओं का निराकरण करना। उससे केवल इतना ही हो सकता है। संसार की सारी समस्याओं के समाधान का ठेका कोई ले नहीं सकता और यदि कोई ऐसा करता है, कहता है तो वह जनता को भ्रम में डालता है, जनता को धोखा देता है। यह बहुत स्पष्ट है कि जब आन्तरिक समस्या का समाधान होता है तो बाहर की सारी समस्याओं को सुलझाने में सुविधा हो जाती है। ___ हम सोचें, समस्या को उलझाता कौन है ? जटिलता कौन पैदा करता है? राजनैतिक समस्या को पेचीदा कौन बनाता है ?
समस्याओं का जनक है आदमी का मस्तिष्क। यही तो उलझाता है। यही तो जटिलता पैदा करता है। आर्थिक समस्याएं क्यों उलझती हैं ? उनके उलझन का
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