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१८. बहुत दूरी है आवश्यकता और आसक्ति में
सुविधा और सुख एक नहीं है। समस्या और दुःख भी एक नहीं है। इस सचाई को जान लेने पर भी आदमी सुविधा की ओर दौड़ता है, समस्या को समाप्त करना चाहता है। यह क्यों? आदमी कितना ही प्रयत्न करे, कितनी ही सचाई को जान ले, जब तक अपने अतीत का परिमार्जन और परिष्कार नहीं कर लेता तब तक जानते हुए भी अनजान बना रहेगा। हमारे साथ अतीत का एक भंडार है। उसका भार हम ढो रहे हैं। वह भार उठने नहीं देता। उठने का प्रयत्न करते हैं और वह नीचे दबा देता है।
अतीत के परिमार्जन के लिए मनुष्य को समझना, उसकी प्रकृति और चरित्र को समझना बहुत जरूरी है। मनुष्य अनेक चरित्र वाला होता है। चरित्र छह प्रकार का होता है१. रागात्मक चरित्र
४. श्रद्धात्मक चरित्र २. द्वेषात्मक चरित्र
५. बुद्ध्यात्मक चरित्र ३. मोहात्मक चरित्र
६. वितर्कात्मक चरित्र इन छह चरित्रों के आधार पर मनुष्य भी छह भागों में विभक्त हो जाते हैं। एक मनुष्य रागात्मक चरित्र वाला होता है। उसे आसक्ति और राग अच्छा लगता है। वह इन्द्रिय-विषयों में आसक्त रहता है। सर्वत्र राग ही राग। सर्वत्र प्रियता ही प्रियता। वह सौन्दर्य का पिपासु होता है। पदार्थ जगत् की लुभावनी आकृतियों में वह आसक्त होता है। वह सबके साथ रागात्मक व्यवहार करता है। राग उसे प्रिय होता है। ___ एक व्यक्ति द्वेषात्मक चरित्र वाला होता है। जहां जाता है वहां द्वेष ही द्वेष फैला देता है। द्वेष, ईर्ष्या, घृणा और संघर्ष के कीटाणुओं को साथ लिए चलता है और जहां अवसर देखता है उनको बिखेरता जाता है। यह द्वेषात्मक प्रकृति है।
एक व्यक्ति मोहात्मक चरित्र वाला होता है। वह अकर्मण्यता, आलस्य और मूढ़ता लिए चलता है। वह कुछ करना नहीं चाहता। निरंतर आराम और विश्राम। खाना, पीना और सोना ये उसके जीवन के मुख्य कार्य होते हैं। वह मूढ़ता में जीता है।
एक व्यक्ति होता है श्रद्धात्मक चरित्र वाला। वह हर बात में विश्वास कर लेता है और प्रत्येक व्यक्ति की बात को मान लेता है।
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