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________________ १७. समस्या और दुःख एक नहीं दो हैं बूढ़े ने ढूंठ से कहा-तेरी और मेरी एक ही दशा है। पहले कितना वैभव था मेरा । मेरा रूप सुन्दर था, दृश्य था। रूप गया। झुर्रियां पड़ गई। पहले तुम भी सुन्दर थे, पत्तों और फलों से लदे हुए। सबको गंवा कर तुम भी ढूंठ जैसे बन गए हो। अब हम दोनों की एक दशा है। ढूठ बूढ़े की बात सुन मुस्करा कर बोला मैं तेरे जैसा नहीं हूं। तू आज दुःख के गीत गा रहा है। मैं दु:खी नहीं हूं। क्या तू नहीं जानता, अभी मैं पतझड़ भोग रहा हूं? पतझड़ चला जाएगा, फिर वसंत आएगा और मेरा रूप निखर जाएगा। मेरे मन में वसन्त की आशा है। वह मेरा आलंबन है। उसके सहारे मैं सदा सुखी रहता हूं। पर तू दुःख भोग रहा है। __एक समान अवस्था। पेड़ भी बूढ़ा और लूंठ बना हुआ है और आदमी भी बूढ़ा और लूंठ बना हुआ है। पेड़ दु:ख नहीं भोग रहा है। आदमी दु:ख भोग रहा है। ऐसा क्यों? दोनों में अन्तर है और इस अन्तर में से सचाई खोज निकालना है। यह सचाई कि समस्या और घटना अलग वस्तु है और दु:ख होना अलग बात है। दो व्यक्ति हैं। दोनों एक जैसी परिस्थिति से गुजरते हैं। एक दु:ख भोगता है और दूसरा दुःख नहीं भोगता। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो राई जितने दु:ख को पहाड़ बना देते हैं और कुछ व्यक्ति पहाड़ जितने भारी-भरकम दु:ख को छोटा बना देते हैं, राई जितना बना देते हैं। दो प्रकार के लोग हैं ज्ञानी और संवेदनशील। जो संवेदनशील होता है, उसका दु:ख मिटता नहीं क्योंकि वह छोटे-से दु:ख को भी बड़ा बनाकर भोगता जाता है। उसका पूरा जीवन संवेदना का जीवन होता है। वह तिनके को मसल बना देता है। ज्ञानी आदमी तिनके को तिनका भी नहीं रहने देता, उसे भी मिटा देता है। वह संवेदन नहीं करता, दु:खी नहीं होता है। ज्ञान का संबंध हमारी चेतना से होता है और संवेदन का संबंध हमारी इन्द्रिय-चेतना से होता है। जो व्यक्ति इस स्तर पर जीता है वह इन्द्रियों को प्रधानता देता है। जो इन्द्रियों की सचाइयों को ही मानता है, वह संवेदनशील हो जाता है और अपने आसपास दु:ख का जगत् निर्मित कर डालता है। इन्द्रियां धोखा देती हैं। आंखों देखा और कानों सुना भी झूठ होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003112
Book TitleSoya Man Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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