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उतर कर सोचना होगा कि कब मित्र मानें और कब शत्रु मानें ?
कारण की खोज में बताया गया कि हमारे दो प्रस्थान होते हैं— कुप्रस्थान और सुप्रस्थान । आत्मा का सुप्रस्थान होता है तब वह हमारी मित्र है और जब कुप्रस्थान होता है तब वह हमारी शत्रु है। यह मित्रता और शत्रुता के विषय में आचरणवादी दृष्टिकोण है
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दो नय हैं, दृष्टिकोण हैं। एक है द्रव्यार्थिक नय जो वस्तु की समग्रता को स्वीकार करता है । एक है पर्यायार्थिक नय जो वस्तु में पैदा होने वाले नए-नए रूपों को स्वीकार करता है । जब हम द्रव्यार्थिक नय अर्थात् वस्तु पर समग्रता की दृष्टि से विचार करते हैं तो आत्मा - आत्मा है। बस, इससे आगे कुछ भी नहीं । आत्मा केवल आत्मा । चैतन्य केवल चैतन्य । न अच्छा, न बुरा । न शत्रु, न मित्र। एक पर्याय उसमें पैदा होता है तब वह आत्मा मित्र बन जाती है । यह है पर्यायार्थिक दृष्टिकोण । पर्याय है, इसलिए ध्यान का प्रयोजन है । यदि पर्याय नहीं होता, शत्रु और मित्र, अच्छा और बुरा नहीं होता तो न धर्म की जरूरत होती और न ध्यान और तपस्या की आवश्यकता होती । जो जैसा है, वैसा ही रहता । किन्तु यह आत्मा का स्वरूप नहीं है। यह उसका अस्तित्व नहीं है । यह पर्याय है। अच्छा होना एक पर्याय है। बुरा होना एक पर्याय है। उपयोगी होना एक पर्याय है और अनुपयोगी होना एक पर्याय है । ये सारी अवस्थाएं हैं। ये बदलती हैं। इनको बदला जा सकता है, इसीलिए धर्म की जरूरत है । ये बदलती हैं, इसीलिए ध्यान और तपस्या आवश्यक है । हमारा कर्त्तव्य और पुरुषार्थ है कि हम इनमें परिवर्तन ला सकते हैं। यह स्वामित्व हमारे हाथ में है । परिवर्तन का सूत्र हमारे हस्तगत हो गया । हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं, दूसरा कोई विध ता नहीं है ।
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सोया मन जग जाए
आत्मा का सु-उत्थान सबको प्रिय लगता है। वह हमारा मित्र है आत्मा का दु:उत्थान अच्छा नहीं लगता । वह हमारा शत्रु है। अच्छा आचरण सबको सुहाता है । बुरा आचरण किसी को नहीं सुहाता । बुरे आचरण वाले को कोई साथ में मिलाना भी नहीं चाहता ।
राजा समरसेन और उसका मंत्री कुषाण । दोनों तेजस्वी और शक्तिशाली । एक बार राजा समरसेन ने पड़ोसी राज्य पर आक्रमण कर, उसे अपने राज्य में मिला लिया। सर्वत्र जय जयकार होने लगा। सभी प्रसन्न । पर मंत्री कुषाण के चेहरे पर कोई प्रसन्नता नहीं । राजा ने पूछा। मंत्री बोला— 'राजन् ! आपने पड़ोसी राजा की उद्दंडता मिटाई, इसका सबको हर्ष है । पर उस राज्य को अपने राज्य के साथ मिलाना, कतई उचित नहीं है। उसके राज्य को मिलाकर अपने
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