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________________ प्राथमिकी अपने उत्तरदायित्व का अनुभव करना अपने भाग्य का निर्माण करना है | दायित्व के प्रति जागरूक होना अपने भाग्य का निर्माण करना है । बहुत लोग भाग्य की निष्पत्ति चाहते हैं पर उसका निर्माण नहीं चाहते । पुण्य का फल चाहते हैं पर उसका आचरण नहीं करते । पाप का फल नहीं चाहते पर उसका आचरण करते हैं । यह विरोधाभास जीवन की अद्भुत कहानी है | भाग्य की लिपि वैद्युतिक संकेतों से निर्मित होती है | भावधारा की निर्मल सरिता में निमज्जन करने वाला ही विद्युतीय जगत् में प्रवेश पा सकता है । व्यक्तित्व की बहुआयामी प्रवृत्तियों में समरसता का सूत्रण करने वाला अनेकता में एकता की अनुभूति कर लेता है । जीवन की सफलता का रहस्य है अनुभूति के उत्स की उपलब्धि । उपलब्ध में जो अनुपलब्ध है, वह रहस्य है । सूक्ष्म है, इसीलिए ज्ञात के सागर में रहे हुए अज्ञात का एक द्वीप है । शब्दों, बिन्दुओं, रेखाओं और अंकनों से परे जो है, उसे उपलब्ध करने की दिशा ही भाग्यनिर्माण की दिशा है । प्रस्तुत पुस्तक में उसी दिशा की ओर प्रस्थान का प्रयल है | स्थूल के कलेवर में समाया हुआ एक सूक्ष्मतम प्रयत्न जिसे अप्रयत्न का प्रयल कहा जा सकता है । कहने को मेरे पास कुछ नहीं है । न कहने के पीछे जो कहने की प्रेरणा है, वह पूज्य गुरुदेव की है । असंकलित को संकलित करने की चेष्टा मुनि दुलहराज ने की है । अपठनीय को पढ़ने का बोझ पाठकों ने उठा रखा है | मैं खोज रहा हं, इन सबके बीच मैं कहां हूं? आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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