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अहिंसा सार्वभौम और अणुव्रत / २४९ अहिंसा में बहुत बड़ी शक्ति नहीं है, पर आज की सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि आज न तो अहिंसक बनने के बारे में प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
और न अहिंसा के विषय में कोई प्रयोग चल रहा है, न कोई शोध हो रही है । कुछ भी नहीं हो रहा है । केवल चर्चा ही चर्चा है । अहिंसा की चर्चा
और अहिंसा का उपदेश । मुझे नहीं पता कि अहिंसा का निरन्तर उपदेश देने वाले व्यक्तियों में अहिंसा के प्रति कितनी आस्था है । उनका उपदेश क्या सुनी-सुनाई बातों पर ही तो आद्धृत नहीं है ! अहिंसा की रट लगाने वालों में अहिंसा के प्रति कितनी श्रद्धा है, यह एक प्रश्नचिह्न है | आस्थाशून्य स्वर क्या अहिंसा को प्रतिष्ठित कर पाएंगे? यह महत्त्व का प्रश्न है।
___ आज हिंसा शक्तिशाली बन रही है, क्योंकि हिंसक में हिंसा के प्रति गहरी निष्ठा है, आस्था है | वह मानता है कि अहिंसा से कभी काम सफल नहीं हो सकता। हिंसा का यह चमत्कार है कि वह दो मिनट में कार्य संपादित करा सकती है । हिंसक के मन में यह संदेह नहीं होता कि कार्य होगा या नहीं ! वह निश्चित जानता है कि हिंसा का प्रयोग होते ही कार्य हो जाएगा। मां बच्चे को समझाती है । वह नहीं मानता, तब मां उसे मारती है, पीटती है । बच्चा शान्त हो जाता है । मां का हिंसा में विश्वास है, वह और पक्का हो गया | मां का तर्क है, जब तक मारा-पीटा नहीं तब तक बच्चा रोता रहा । मार पड़ते ही शान्त हो गया। आदमी जीवन के हर क्षेत्र में अनुभव कर रहा है कि जो काम समझाने-बुझाने से नहीं होता, वह काम हिंसा के सहारे तत्काल हो जाता है । हिंसा के प्रति लोगों की गहरी आस्था जम गई । उनमें ईंट के प्रति पत्थर का प्रयोग करने की गहरी आस्था है। दो गाली देने के बदले पचास गाली देने में उनकी निष्ठा है । हिंसक के मन में हिंसक के प्रति प्रचुर आस्था है । दूसरी बात है कि हिंसा का प्रयोग करते ही कार्य संपन्न हो गया, यह बात हिंसा के लिए अवकाश उपस्थित करती है । हिंसक को न उपदेश देने की जरूरत होती है और न प्रचार करने की । उसे हिंसा का संस्थान भी नहीं बनाना पड़ता | फिर भी उसकी हिंसा को प्रोत्साहन मिलता है। उसकी हिंसा सफल होती है । आज पुलिस के जवानों और सैनिकों को व्यवस्थित प्रशिक्षण दिया जाता है कि प्रहार कैसे किया जाए ? अपराधी को कैसे पकड़ा जाए ? उसे यातनाएं कैसे दी जाएं ? जुलूस को कैसे तितर-बितर किया जाए ?
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