SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाग्य की लिपि वैद्युतिक संकेतों से निर्मित होती है । भावधारा की निर्मल सरिता में निमज्जन करने वाला ही विद्युतीय जगत् में प्रवेश पा सकता है | व्यक्तित्व की बहुआयामी प्रवृत्तियों में समरसता का सूत्रण करने वाला अनेकता में एकता की । अनुभूति कर लेता है । जीवन की सफलता का रहस्य है अनुभूति के उत्स की उपलब्धि । उपलब्ध में जो अनुपलब्ध है, वह रहस्य है । सूक्ष्म है, इसीलिए ज्ञात के सागर में रहे हुए अज्ञात का एक द्वीप है । शब्दों, बिन्दुओं, रेखाओं और अंकनों से परे जो है, उसे उपलब्ध करने की दिशा ही भाग्यनिर्माण की दिशा है । प्रस्तुत पुस्तक में उसी दिशा की ओर प्रस्थान का प्रयत्न है। Jain Education Interatie Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy