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________________ ६२ समाज-व्यवस्था के सूत्र यही आज मनुष्य कर रहा है। क्योंकि उसका दृष्टिकोण सही नहीं है। यदि दृष्टिकोण सही हो तो यह स्थिति बन नहीं सकती। आप स्वयं सोचें कि आज आदमी मूल्यवान है या पदार्थ ? पदार्थ भोग्य है. उसका मूल्य नहीं है। आदमी उसको मूल्य देता है। यदि ऐसा सोचा जाता है तो वह सही दृष्टिकोण है। परन्तु यदि ऐसा सोचा जाता है कि मूल्य तो पदार्थ का है, क्योंकि उसके बिना जीवन चल नहीं सकता। मूल्य तो धन का है, क्योंकि जीवन उसके विना चल नहीं सकता। मूल्य तो धन का है; क्योंकि जीवन की प्रत्येक आवश्यकता उससे पूरी होती है। यह गलत दृष्टिकोण है। ऐसा क्यों नहीं सोचा जाता कि आदमी के बिना काम कैसे चलेगा। आदमी के विना पदार्थ का उपयोग कौन करेगा? .. ो समझने का सबसे बड़ा सूत्र है-भेदविज्ञान। जैन सोन: ।। बहुत बल दिया कि जब तक चेतन और जड़ का भेद स्पप्ट नहीं होता, तव ... भ का 'अ, आ' भी समझ में नहीं आता। जब भेदविज्ञान का सूत्र स्पष्ट हो जाता है, तव दृष्टिकोण भी सही बन जाता है। सही दृष्टिकोण के विना मंजिल प्राप्त नहीं हो सकती। सही दृष्टिकोण के अभाव में तपस्याएं, साधनाएँ भी उतना फल नहीं दे सकतीं, जितना देना चाहिए। हम अपने दृष्टिकोण को सम्यक् करने का प्रयत्न करें और उसके आलोक में जीवन को प्रकाशमय बनाएँ। समाज-निर्माण के दोनों घटकों-व्यक्ति का निर्माण और दृष्टिकोण का निर्माण-को सही-सही समझकर हम समाज-निर्माण में अपना योगदान दें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003110
Book TitleSamaj Vyavastha ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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