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________________ समाज-व्यवस्था के सूत्र पास गाय थी। वह गोबर करती। आने जाने वालों के पैर गोबर में लिप्त हो जाते। कुछ व्यक्तियों ने शाह के पास शिकायत की कि महल के पास से झोंपड़ी को हटा दिया जाए। शाह ने बुढ़िया को बुलाकर कहा-'बुढ़िया ! तुम अपनी झोंपड़ी कहीं अन्यत्र बना लो। मैं तुम्हें इससे बड़ी जमीन दे दूँगा। बुढ़िया बोली- 'मैं तो यहीं रहूँगी। मेरे बाप-दादे भी यहीं रहते थे। क्यों जाऊँ मैं ? सम्राट् ! मैं तो अपनी झोंपड़ी के पास आपके महल को देख सकती हूँ और आप अपने महल के पास मेरी झोंपड़ी को नहीं देख सकते ?' बादशाह मौन और स्तब्ध रह गया। बुढ़िया ने आगे कहा-'शाह ! मेरी एक बात और सुन लेना, यदि आपने जबरदस्ती मेरी झोंपड़ी यहाँ से उठा दी तो आपके राज्य का सत्यानाश हो जाएगा, क्योंकि सारी प्रज्ञा आपके विरुद्ध हो जाएगी, सभी आपका अनर्थ सोचने लगेंगे। यदि आप मेरी झोंपड़ी को यहीं रहने देंगे तो लोग सोचेंगे कि बादशाह भी बुढ़िया की झोंपड़ी नहीं उठा सका तो हम प्रजा के साथ अन्याय नहीं कर सकेंगे।' बादशाह समझ गया। पदार्थ का स्वभाव है कि वह दूसरे को सहन नहीं कर सकता। महल वाला झोंपड़ी को सहन नहीं कर सकता। झोंपड़ी वाला यदि महल को सहन नहीं करता है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है, क्योंकि उसके मन में एक प्रतिक्रिया होती ही है। उसमें ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा जागे, यह अस्वाभाविक नहीं है, किन्तु आश्चर्य तब होता है जब महल झोंपड़ी को अपने पास बने रहने में सहन नहीं करता। ईर्ष्या और स्पर्धा ने भोगवादी संस्कृति का यह रूप हमारे सामने प्रस्तुत कर इसे प्रस्थापित कर दिया। इसी के कारण सामाजिक सम्बन्धों में तनाव आता है। अभी मैंने पढ़ा था कि जर्मन के कुछ विशेषज्ञों ने यह माना है कि ईर्ष्या बहुत बड़ी बीमारी है। पहले यह माना जाता था कि ईर्ष्या एक मनोभाव है, अब यह बीमारी के रूप में स्वीकृत है। उनका कहना है कि शरीर में होने वाले अनेक दर्द ईर्ष्या के कारण होते हैं। पेट में, कमर में, पीठ में, सिर में जो दर्द होता है, उसका मूल कारण है ईर्ष्या। तो तनाव पैदा करने वाले मनोभाव केवल मन को ही रुग्ण नहीं बनाते, शरीर को भी रोगग्रस्त कर देते हैं। प्रायः दर्द की चिकित्सा के लिए डॉक्टर औषधियाँ देते हैं। वह मिटता नहीं। मिटे भी कैसे ? जब वह मनोभाव जन्य है। ईर्ष्या पैदा होती है मन में और इलाज होता है शरीर का। दवा कहीं, दर्द कहीं ! इलाज कुछ और बीमारी कुछ ! यह है विपर्यास । शरीरगत बीमारी हो तब तो औषधि अपना काम करे ? पर बीमारी है मन की और इलाज चलता है शरीर का। कभी-कभी ऐसा होता है कि शरीर का सारा परीक्षण करा लेने पर भी बीमारी हाथ नहीं लगती। अब वह कैसे ठीक हो ? डॉक्टर कहता है परीक्षण के आधार Jain Education International For Private & Personal Use Only 'www.jainelibrary.org
SR No.003110
Book TitleSamaj Vyavastha ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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