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________________ मनःस्थिति और समाजवाद दो दृष्टियाँ हैं-व्यवहारदृष्टि और निश्चयदृष्टि । एक स्थूल है और दूसरी सूक्ष्म । स्थूल दृष्टि से देखते हैं तो लगता है कि जगत् व्यवस्था से चलता है। सूक्ष्म दृष्टि से देखते हैं तो लगता है कि जगत् चेतना के द्वारा चल रहा है। व्यवस्था स्वयं में नहीं है। वह चेतना के द्वारा संचालित है। समाजवाद, साम्यवाद, जनतन्त्र आदि-ये सारी शासन प्रणालियाँ मनुष्य के द्वारा संचालित हैं। सामाजिक व्यवस्थाएँ, चिकित्सा या प्रशिक्षण की व्यवस्थाएँ तथा ऐच्छिक व्यवस्थाएँ-ये सारी मनुष्य के द्वारा संचालित हैं। कम्प्यूटर के बारे में महत्त्वपूर्ण बातें सुनी जा रही हैं पर कम्प्यूटर आखिर है क्या ? यन्त्र ही तो है। और वह भी एक मनुष्य के द्वारा संचालित है। कम्प्यूटर में जितना भरा जाता है उतना ही वह उगल देता है। इससे अधिक वह कुछ कर नहीं सकता। इसमें भी मूल बात है मनुष्य और उसकी चेतना। वह चेतना के द्वारा संचालित है। हमें समझना है कि चेतना किस प्रकार बदलती रहती है, किस प्रकार हमारी मनःस्थिति बदलती है। मनःस्थिति और परिस्थिति दो हैं। हम स्थूलदृष्टि से देखते हैं तो परिस्थिति को बहुत मूल्य देते हैं। सारी अच्छाई और बुराई का दायित्व परिस्थिति पर लाद देते हैं। जब हम स्थूलदृष्टि से विचार करते हैं तो यह सचाई सामने आती है कि बेचारी परिस्थिति बहुत कमजोर है। उसमें शक्तिसंचार करने की प्राण-ऊर्जा है मनःस्थिति। मनःस्थिति परिस्थिति को सहारा देती है, आगे बढ़ाती है। यदि मनःस्थिति ठीक है तो परिस्थिति ठीक हो जाती है। यदि मनःस्थिति ठीक नहीं है तो परिस्थिति गड़बड़ा जाती है। व्यवस्था करने वाला यदि स्वस्थ नहीं है तो परिस्थिति विषम बन जाती है। जनतन्त्र की प्रणाली में यदि भ्रष्टाचार और अनैतिकता है तो साम्यवादी प्रणाली में भी वह है। क्योंकि मनुष्य के मन में भ्रष्टाचार और अनैतिकता व्याप्त है तो वह व्य 'स्था भी उनसे मुक्त नहीं हो सकती। व्यवस्था में भी वे व्याप्त हो जाएंगे। अतः सूक्ष्मदृष्टि से विचार करेंगे तो यह स्पष्ट प्रतीत होगा कि परिस्थिति को सुधारने की अपेक्षा पहले मनःस्थिति को सुधारना जरूरी है। दोनों में प्राथमिकता मिलनी चाहिए मनःस्थिति को। आज के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003110
Book TitleSamaj Vyavastha ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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