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________________ पदार्थ, इच्छा और प्रेक्षा मानसिक स्तर पर भी जीता है। इन सब स्तरों पर समाहित जीवन जीकर ही व्यक्ति सुखी हो सकता है। ___ हम एकांगी-दृष्टि से न सोचें। हम प्रत्येक बात को अनेकान्तदृष्टि से सोचें। हम मानसिक परिवर्तन की चेष्टा करें तो साथ ही साथ भौतिक स्तर पर भी संयम करना सीखें और विवेक की चेतना को जगाएँ। हम यह विवेक करना सीखें कि कितना काम में लेना है और कितना नहीं। नींद जीवन की आवश्यकता है, पर यह विवेक होना चाहिए कि नींद कितनी आवश्यक है। यदि आवश्यकता का ज्ञान नहीं होगा तो नींद भी खतरा पैदा कर देगी। वह स्वास्थ्य को बिगाड़ देगी। अधिक नींद अकालमृत्यु को निमन्त्रण है। अधिक नींद से आयु कम होती है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि नींद में श्वास की संख्या बढ़ जाती है। अधिक श्वास आयु को घटाता है। अधिक जागने वाला लम्बा जीवन जीता है और अधिक सोने वाला थोड़ा जीवन जीता है। नींद में श्वास छोटा होता है। जाग्रत आदमी एक मिनट में १५-१८ श्वास लेता है तो वही नींद में २५-३० श्वास लेता है। नींद में खर्राटे भरने वाला ४०-५० श्वास लेने लग जाता है। जब श्वास छोटा होता है तब जीवनीशक्ति ज्यादा खर्च होती है। इससे आयुष्य कम होता है। नींद आवश्यक है, अधिक नींद अनावश्यक है। यह विवेक बहुत जरूरी है। सभी प्रवृत्तियों में विवेक जरूरी है। भोजन आवश्यक है, पानी और दूध भी आवश्यक है। पर उनकी भी एक सीमा है। सीमातिरेक होने पर वे सब हानिकारक सिद्ध होते हैं। ज्यादा मात्रा में भोजन करना, पानी पीना, दूध पीना या नींद लेना ये सब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। मात्रा में ये सब चीजें स्वास्थ्यप्रद होती हैं। प्रत्येक प्रवृत्ति के साथ आवश्यक और अनावश्यक का विवेक जुड़ा हुआ है। हमारी विवेक चेतना जागे। यह होने पर ही ध्यान, कायोत्सर्ग, शरीर प्रेक्षा, चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा के प्रयोग सार्थक होंगे, अन्यथा क्षणिक लाभ ही होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003110
Book TitleSamaj Vyavastha ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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