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क्यों नहीं हो रहा है योगक्षेम की ओर प्रस्थान?
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मुक्त कौन : बंधा हुआ कौन?
_ 'आत्मा अन्य है और पुद्गल अन्य है' धर्म का यह सबसे शक्तिशाली मंत्र है। इससे पुद्गल के एकछत्र साम्राज्य को तोड़ा जा सकता है। यह एक प्रक्षेपास्त्र है, शक्तिशाली अस्त्र है। शायद इससे बड़ा धर्म के पास कोई हथियार नहीं है। यदि यह पूछा जाए-धर्म का सबसे ज्यादा शक्तिशाली अस्त्र कौन सा है? उत्तर होगा-भेद-विज्ञान। आत्मा अलग और शरीर अलग, चेतना अलग
और पुद्गल अलग, इस सत्य की अनुभूति भेदविज्ञान है। एक आचार्य ने लिखा
भेदविज्ञानतो सिद्धाः, सिद्धा ये किल केचन।
भेदाऽविज्ञानतो बद्धाः, बद्धा ये किल केचन ।। दुनिया में आज जितने मुक्त हैं, वे भेद-विज्ञान के कारण हुए हैं। जितने बंधन में है, वे भेद-विज्ञान के अभाव में बंधे हुए है।
मुक्ति और धर्म का सबसे शक्तिशाली अस्त्र है-भेद-विज्ञान, 'मैं पुद्गल नहीं हूं' इसका बोध होना। जिस दिन यह बोध होता है, पुद्गल का एक छत्र साम्राज्य टूटने लग जाता है। उसमें इतना बड़ा छेद हो जाता है कि वह टूटता ही चला जाता है। भेद-विज्ञान : दृष्टान्त
_भेद-विज्ञान का अनुभव किए बिना कोई भी व्यक्ति अध्यात्म की साधना में सफल नहीं हो सकता। जिसे योगक्षेम की ओर प्रस्थान करना है, असंयम से संयम की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर जाना है, उसके लिए शायद इससे बड़ा आकर्षण का मंत्र नहीं होगा। इसीलिए जैन परम्परा के महान् आचार्यों ने भेद-विज्ञान पर बहुत बल दिया। भेद-विज्ञान का अर्थ हैं विवेक करना, गेहूं और कंकरों को अलग कर देना। आचार्य भिक्षु के कुछ उदाहरण इस संदर्भ में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं-तिल से तेल को अलग कर देना। छाछ से मक्खन को अलग कर देना। सोने और मिट्टी को अलग कर देना। 'तेरह द्वार' ग्रन्थ में पृथक्करण की प्रक्रिया के निदर्शन उपलब्ध हैं-कोल्हू के द्वारा तिल और तेल को अलग किया जाता है। मथानी का उपयोग करके छाछ और मक्खन को अलग किया जाता है। अग्नि का उपयोग करके सोने और मिट्टी को अलग किया जाता है, वैसे ही चेतना और पुद्गल को भेद-विज्ञान की साधना से अलग किया जा सकता है। धर्म की पहली और अन्तिम साधना
धर्म की पहली और अन्तिम साधना है भेद-विज्ञान। प्रश्न है अभ्यास और प्रयोग का। अभ्यास के बिना न तो भेद में रस आएगा और न उसकी
गी। यह माना जाता है-नेपोलियन धर्म के विरुद्ध था। संस्थागत धर्म के विरुद्ध नेपोलियन ने क्रांति की। वह धर्म को नहीं मानता था फिर भी वह बहुत समझदार शासक था, बुद्धिमान् था, वास्तविकता को जानता था। समाज का संगठन कैसे चलता है, वह इस बात को भी जानता था। समाज कुछ नैतिक मूल्यों पर आधारित होना चाहिए, इस बात से भी वह परिचित था। एक बार
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