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क्यों नहीं हो रहा है योगक्षेम की ओर प्रस्थान?
प्रश्न उपस्थित हुआ—इस दुनिया में अच्छाई की शक्ति ज्यादा है या बुराई की शक्ति? शक्तिशाली कौन है? मीमांसा चली, विश्लेषण किया गया। निष्कर्ष निकला-बुराई शक्तिशाली है। इसकी पकड़ बहुत मजबूत है। अनेक आदमी अच्छाई को जानना नहीं चाहते। कुछ जानते हैं तो उस तक पहुंचना नहीं चाहते। कुछेक अच्छाई को पा भी लेते हैं किन्तु उसमें स्थिर नहीं हो पाते। आदमी बुराई के पास बहुत सहजता से चला जाता है, उस तक पहुंच जाता है, उसमें रम जाता है। कहा जाता है-बुराई को कम करो, अच्छाई को स्वीकारो। सचाई इसके विपरीत लग रही है-अच्छाई छूट जाती है और बुराई अनायास उपलब्ध हो जाती है।
सभी धर्मों और अच्छे विचारकों ने प्रेरणा दी-अच्छाई की तरफ जाओ पर उस दिशा में गति बहुत धीमी है या प्रारम्भ ही नहीं होती। उत्तराध्ययन सूत्र में यही प्रश्न उभारा गया है
कुसग्गमेत्ता इमे कामा, संनिरुद्धम्मि आउए।
कस्स हेउं पुराकाउं, योगक्खेमं न संविदे? __ ये काम-भोग कुशाग्र पर स्थित जल-बिन्दु जितने है। मनुष्य का आयुष्य अति संक्षिप्त है। वह फिर किस हेतु को सामने रखकर योगक्षेम की ओर प्रस्थान नहीं कर रहा है?
पूरा चिन्तन इस श्लोक में संदृब्ध है। काम है कुशाग्रमात्र। जैसे कुश की नोंक पर जल की बूंद टिकती है और थोड़ी-सी हवा लगते ही गिर जाती है, वैसे ही इस क्षणिक जीवन में कामभोग भी क्षण-स्थायी हैं। नीति का प्रसिद्ध श्लोक
चला लक्ष्मी चलाः प्राणाः चलं जीवितयौवनम् ।
चलाचलेस्मिन् संसारे, धर्म एको हि निश्चलः ।। मनुष्य का वैभव स्थिर नहीं है, उसका प्राण और यौवन भी अस्थिर है। यह संपूर्ण संसार चलाचल है। इसमें एकमात्र स्थिर तत्त्व है धर्म । योगक्षेम की ओर प्रस्थान का अर्थ
धन, भोग, यौवन-ये सब चंचल हैं, स्थिर नहीं हैं, नश्वर हैं। इस स्थिति में जो अचल है उसकी ओर प्रस्थान क्यों नहीं हो रहा है? योगक्षेम की
ओर प्रस्थान करने का मतलब है अशाश्वत से शाश्वत की ओर प्रस्थान, चल से अचल को ओर यात्रा।
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