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महावीर का पुनर्जन्म
आज के लोग कानूनी नियमों को समझने का बहुत प्रयत्न करते हैं पर प्राकृतिक नियमों की ओर उनका ध्यान नहीं जाता। प्राकृतिक नियमों को समझना जरूरी है। केवल कानून के नियम व्यक्ति के लिए त्राण नहीं बनेंगे। हो सकता है-कानून के नियम २०-३० वर्ष तक व्यक्ति के आडे आ जाएं किन्तु व्यक्ति को यहां से जहां जाना है, वहां कौन आड़े आएगा? न कोई वकील साथ में चलेगा और न कोई डॉक्टर साथ में चलेगा। वहां साथ चलेगा अपना नियम और प्रकृति का नियम। इसलिए प्रकृति के नियम को समझना आवश्यक है, गति के नानात्व और उसके हेतु को जानना अपेक्षित है। सब जीव समान नहीं हैं, सब मनुष्य भी समान नहीं हैं। यह गति का जो भेद है, वह व्यक्ति का अपना किया हुआ भेद है। यह बात जितनी गहराई से हृदय में उतरेगी, व्यक्ति अपनी चेतना को उतना ही अधिक पवित्र बना सकेगा, अपने आचरण को विशुद्ध बना सकेगा। आचरण शुद्धि, धर्म और नैतिकता का बहुत बड़ा हेतु बनता है नानात्व का बोध। इस तथ्य को समझने वाला, हृदयंगम करने वाला धर्म की ओर प्रस्थित हो जाता है।
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