________________
इन्द्रिय-संयम का प्रश्न
करना चाहिए, जिससे मूर्छा को बढ़ावा न मिले, उद्दीपन न मिले। आगम साहित्य में इस बात पर बहुत विचार किया गया है कि किस प्रकार इन्द्रिय-असंयम के कारण मुर्छा को उद्दीपन मिलता है, राग-द्वेष बढ़ता है और संयम की विराधना होती है।
इन्द्रिय-संयम का प्रश्न व्यक्ति के स्वास्थ्य के साथ जुड़ा हुआ है। जब तक जीवन में इन्द्रिय-संयम को मूल्य नहीं मिलेगा तब तक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और भावात्मक स्वास्थ्य का प्रश्न सदा प्रस्तुत रहेगा। इन्द्रिय-संयम से न केवल शरीर और मन स्वस्थ रहते हैं किन्तु बुद्धि और भाव भी पवित्र रहते हैं। जीवन विज्ञान का प्रसिद्ध सूत्र है-स्वस्थे चित्ते बुद्धयः प्रस्फुरन्ति-स्वास्थ्य चित्त में प्रतिभा का स्फुरण होता है। मलिन चित्त में प्रज्ञा का स्फुरण नहीं होता। प्रज्ञा जागरण के लिए इन्द्रिय-संयम, शरीर की निर्मलता और योग की भाषा में प्राण और अपान की निर्मलता आवश्यक है। अपान शुद्ध होगा तो प्रज्ञा जागेगी। अपान दूषित रहेगा तो प्रज्ञा का स्फुरण ही नहीं होगा, विचार भी दूषित बने रहेंगे। यदि प्राण और अपान को निर्मल बनाया जाए, इन्द्रिय-संयम के द्वारा अपनी प्रज्ञा को निर्मल बनाया जाए तो आध्यात्मिक विकास की संभावना उज्ज्वल बन सकती है, अपने संयम के द्वारा अपनी प्रज्ञा को जगाने का मार्ग प्रस्तुत हो सकता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org