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________________ इन्द्रिय-संयम का प्रश्न राजा आम का बड़ा शौकीन था। बड़ी कठिनाई हो गई। राजा बोला-'वैद्यजी! आपने बड़ा कड़ा पथ्य बतलाया।' 'इसका पालन आपको करना होगा।' 'प्रतिदिन कितने आम खा सकता हूं?' 'आम बिलकुल भी नहीं खाना है।?' 'आम का मौसम कुछ महीने के लिए आता है। क्या एक-दो दिन भी नहीं खाना है।' 'महाराज! जीवन भर आम नहीं खाना है। जिस दिन आपने आम खा लिया, उस दिन आपको कोई नहीं बचा सकेगा। राजा विवश था। उसने वैद्य का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। मौसम बदला। वैशाख का महीना आया। आम्रवृक्ष आमों से लद गए। राजा ने अपने मंत्री से कहा-'चलो! बहुत दिन हो गए, आज बगीचे में चलें। 'महाराज! वन के बगीचे में क्या करेंगे? राजप्रासाद में बहुत बड़ा बगीचा है। आप वहीं घूम लें। 'नहीं, आज वहीं चलना है।' मंत्री बेचारा क्या करे। आखिर राजा राजा है। राजा और मंत्री-दोनों बगीचे में गए। राजा को मंत्री ने उधर ले जाना चाहा जिधर आम के पेड़ नहीं थे पर राजा उधर चल पड़ा, जिधर आम के पेड़ थे। राजा आम के पेड़ों को देख कर मुग्ध हो उठा। बोला---'मंत्रीजी! आम कितने अच्छे है!' ___महाराज! आपको जिस गांव ही नहीं जाना है, उसका रास्ता पूछने का मतलब ही क्या है? आपको आम देखना ही नहीं है।' 'तुम भी बड़े भोले हो। वैद्य लोग ऐसे ही कह दिया करते हैं। उनकी सारी बात मान ले तो आदमी जी ही नहीं सके। उनकी बात केवल सुनने की होती है। मानना उतना ही चाहिए जितना उचित लगे।' मंत्री ने सोचा-आज क्या हो गया है महाराज को! ये क्यों मौत के मुंह में जा रहे हैं? राजा ने कहा-'देखो! सघन पेड़ हैं, कितनी अच्छी छाया है। वैद्य ने आम खाने की मनाही की है। पेड़ के नीचे बैठने का निषेध तो नहीं किया है?' राजा पेड़ की सघन छाया में बैठ गया। आंखें ऊपर आम पर टिकी हुई थीं। ऐसा कोई योग मिला, पवन का एक झोंका आया और एक पका हुआ आम राजा की गोद में आ गिरा। राजा ने उसे उठाया। वह उसे कभी इधर से देखता है और कभी उधर से देखता है। मन्त्री ने कहा-'महाराज! आप क्या कर रहे हैं? क्यों मौत को बुला रहे 'मंत्रीजी! यदि इन वैद्यों के कहने के अनुसार चलते रहें तो जीना दूभर हो जाए। जीने का सारा रस निचुड़ जाए। यदि आदमी अपना मनचाहा न करे तो जीए किसलिए?' यह कहते हुए राजा ने आम खा लिया। आम खाते ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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