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महावीर का पुनर्जन्म
समवर्ती है। वह सब पर समान रूप से वर्त है। किसी का पक्षपात नहीं करता । इन्द्रियां भी समवर्ती हैं। सभी प्राणियों के पास है । संसार का एक भी प्राणी ऐसा नहीं है, जिसे इन्द्रिय सुलभ न हो । इन्द्रिय का यह स्वरूप प्रत्येक व्यक्ति के लिए परम उपयोगी है ।'
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शत्रुता का कारण
शिष्य बोला- 'गुरुदेव ! एक ओर आप इन्द्रियों को परम उपयोगी बता रहे हैं और दूसरी तरफ उन्हें शत्रु कहा जा रहा है।'
आचार्य ने कहा- 'महामति शिष्य ! इन्द्रियां जब राग-द्वेष के प्रभाव से अविष्ट होती हैं, तभी शत्रु कहलाती हैं। राग-द्वेष मुक्त इन्द्रियां शत्रु नहीं हैं ।' आविष्टानि यदा तानि, रागद्वेषप्रभावतः । तदा तानि विपक्षाणि, नेतराणि महामते ! ।।
जब गंगा के निर्मल पानी में फैक्ट्रियों का दूषित कचरा मिलता है तो साफ पानी भी दूषित हो जाता है। जब इन्द्रिय- ज्ञान की निर्मल धारा में राग और द्वेष का कचरा मिल जाता है, उस अवस्था में वे शत्रु बन जाती हैं । यह बात अध्यात्म की भूमिका पर कही जा सकती है । इन्द्रियां एक साधक के लिए अहितकर भी हैं और शत्रुता का काम भी करती हैं। जब इनमें मूर्च्छा का मिश्रण हो जाता है, राग और द्वेष का मिश्रण हो जाता है, तब अध्यात्म विकास में बाधा उत्पन्न हो जाती है । जब मोह की गन्दी नाली इन्द्रियों के साथ जुड़ जाती है, इन्द्रियां उससे आविष्ट हो जाती हैं तब वे चित्त की निर्मल धारा को कलुषित कर देती हैं।
दर्शन और आध्यात्म के क्षेत्र में यह एक बहुत बड़ा विषय रहा है। इस विषय पर गहन अध्ययन करने वालों के लिए आचार्य भिक्षु का एक ग्रन्थ 'इन्द्रियवादी की चौपाई' बहुत उपयोगी है । इन्द्रियों की वास्तविकता क्या है? इन्हें शत्रु क्यों माना जाता है ? इन्द्रियां कब मित्र बनती हैं और कब शत्रु ? ये प्रश्न अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । इन्द्रियां न नितान्त मित्र हैं और न नितान्त शत्रु बनती हैं । एक अवस्था में वे मित्र हैं और एक अवस्था में वे शत्रु का काम भी करती हैं। इन दोनों स्थितियों का सम्यक् बोध आवश्यक है।
मानवीय जीवन के तीन पक्ष
अमेरिका के दार्शनिक हेनरी जेम्स बहुत बड़े चिन्तक हुए हैं। उन्होंने मानवीय जीवन को तीन पक्षों में बांटा - एक बाह्य अथवा भौतिक, दूसरा आन्तरिक अथवा मानसिक और तीसरा है आध्यात्मिक । इन तीनों भागों में मानव का जीवन विभक्त होता है । बाह्य जीवन व्यक्ति का शरीर है। आंतरिक जीवन उसका मन है, जिसके द्वारा स्मृति, कल्पना और चिन्तन चलता है । आध्यात्मिक जीवन व्यक्ति की आत्मा है। आत्मा, मन और शरीर - इन तीनों का योग है हमारा व्यक्तित्व । यह जेम्स की परिभाषा है ।
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