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महावीर का पुनर्जन्म
में कैद कर दिया गया। मानना चाहिएएक राजा को कर्मचारी ने कैद कर लिया। सम्प्रदाय ऊपर आ गया, धर्म उसके नीचे दब गया। इसीलिए धर्म के नाम पर इतिहास का एक काला पृष्ट जुड़ा है। धर्म को नकारने वाले इस तर्क का अक्सर प्रयोग करते हैं-धर्म के नाम पर कितनी भूमि रक्त-रंजित हुई। वे कहते हैं-धर्म ने कितनी लड़ाइयां करवाई, युद्ध करवाये, भूमि को लहुलुहान बनाया। उसने भाई-भाई को बांट दिया। इस तर्क के सहारे बड़े-बड़े विद्वान धर्म को अस्वीकार्य बतलाते हैं। इस तर्क में हम मूल बात को भूल जाते हैं। हम कभी-कभी तर्काभास को भी तर्क मान लेते हैं। जिस व्यक्ति के मन में धर्म जागता है, उस व्यक्ति के मन में हृदय-परिवर्तन के सिवाय दूसरी बात आ ही नहीं सकती। अगर तर्क-प्रयोग और बल-प्रयोग नहीं होता तो कभी युद्ध नहीं होता। ये सब हुए हैं सम्प्रदाय के नाम पर और इन्हें थोप दिया गया धर्म के नाम पर। एक भ्रांति पैदा हो गई।
एक शाश्वत सत्य है-धर्म के नाम पर वैर-विरोध, कलह और युद्ध न कभी हुआ है, न कभी होता है और न कभी होगा। जो कुछ भी हो रहा है, वह सब संप्रदाय के नाम पर हो रहा है, वेश-भूषा और बाहरी परिस्थितियों के नाम पर हो रहा है। उसे धर्म के नाम पर आरोपित कर दिया जाता है।
हम ईसाई धर्म के साहित्य को देखें। संत ऑगस्टाइन ने इंग्लैण्ड के राजा को समझाया। वह कैथोलिक धर्म का अनुयायी बन गया। राजा ने संत ऑगस्टाइन से प्रार्थना की-'महाराज! आप आदेश दें, मैं सारी प्रजा को कैथोलिक बना दूं।' संत ऑगस्टाइन बोले-'नहीं! यह ईसाई धर्म का सिद्धान्त नहीं है। बल-प्रयोग करना ईसाई धर्म में मान्य नहीं है। हम जनता को कैथोलिक बनाएंगे तो समझा-बुझाकर बनाएंगे, बल-प्रयोग या प्रलोभन का प्रयोग नहीं करेंगे।' अध्यात्म की परिभाषा
यह स्वर आचार्य भिक्षु के स्वर से भिन्न नहीं है। जिस व्यक्ति के मन में धर्म उतरा, उसने कभी हिंसा का सहारा नहीं लिया। जिसके मन में संप्रदाय बैठ गया, उसने ही हिंसा का सहारा लिया। जैन धर्म ने इस पर निश्चय नय और व्यवहार नय-दोनों दृष्टियों से विचार किया। निश्चय नय शाश्वत नियम हैं, अपरिवर्तनीय नियम हैं। व्यवहार नय का मतलब है बदलने वाले नियम। निश्चय नय से विचार करें तो धर्म है आत्मा की अनुभूति। वह अनुभूति किसी भी व्यक्ति को हो सकती है, कहीं भी हो सकता है। वह व्यक्ति के अपने भीतर की बात है।
एक व्यक्ति गुरु के पास आया, बोला-'गुरुदेव! धर्म क्या है? मुझे धर्म की व्याख्या समझाइए।' गुरु ने कहा-'अभी मैं व्यस्त हूं। नगर के बाहर तालाब में एक मछली है। तुम उसके पास जाओ, तुम्हारे प्रश्न का समाधान मिल जाएगा।' वह मछली के पास गया। उसने मछली से कहा- 'मुझे धर्म की परिभाषा समझाओ।' मछली बोली-'अच्छी बात है। मैं तुम्हें धर्म की परिभाषा समझाऊंगी। किन्तु मुझे बहुत प्यास लगी है। एक गिलास पानी ले आओ।' वह बोला- कैसी मूर्खतापूर्ण बात करती हो। पानी के भीतर रहती हो, फिर प्यासी कैसे हो?'
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