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________________ जैन मुनि और व्यावसायिक वृत्ति ५२१ हैं। किन्तु जैन मुनि का सर्वोपरि व्रत रहा आकिंचन्य का, पैसे का लेन-देन नहीं, बैंक-बेलेंस की तो बात ही दूर! किन्तु आज स्थिति कुछ बदलती सी नजर आ रही है। इसका कारण क्या है? मैं समझता हूं, इसका मूल कारण है कि गुरु का नियंत्रण नहीं रहा। रामकृष्ण ने एक बार कहा-वैद्य तीन प्रकार के होते हैं-अधम,मध्यम और उत्तम। वैद्य आया, बीमार को देखा, दवा दी और चलता बना, वह अधम कोटि का वैद्य है। वैद्य आया, रोगी को देखा, पास बैठा, दवा के गुण-धर्म समझाए, पथ्य-परहेज बताया और चला गया। वह मध्यम कोटि का वैद्य है। उत्तम कोटि का वैद्य वह है जो बीमारी के मूल को नष्ट करने के लिए कड़वी से कड़वी दवा भी जबरन रोगी को पिला देता है। गुरु भी तीन प्रकार के होते हैं-दीक्षा दी, कुछ बताया, फिर जीवन भर नहीं पूछेगे कि साधना कैसे चल रही है? वह अधम कोटि का गुरु है। मध्यम कोटि का गुरु वह होता है जो शिष्य को कभी पूछ लेता है, अन्यमनस्कता से मार्ग बता देता है, पर अधिक चिन्ता नहीं करता। उत्तम गुरु वह होता है-जो शिष्य के जीवन को उन्नत बनाना अपना दायित्व समझते हैं और तब तक उसके पीछे पड़े रहते हैं जब तक कि वह सही मार्ग पर आगे बढ़ने नहीं लगता। वे येनकेन उपाय से उसे रास्ते पर आगे बढ़ाते __ आज उत्तम गुरु के नेतृत्व के अभाव में जैन परम्परा के भीतर कुछ विकार आ रहे हैं। आचार्य भिक्षु ने इसीलिए तो अपने आत्म-निवेदन में कहा था-'प्रभो! आज आपके शासन में क्या हो गया है।' नियंता और नियंत्रण के अभाव बिना में विकतियां आती हैं। नियंत्रण में रहना कोई नहीं चाहता। अनुशासन किसी को पसंद नहीं है। किन्तु उसके बिना किसी का भी भला नहीं होता। न व्यक्ति का, न समाज का और न धर्म-संघ का। आचार्यश्री बहुत बार कहते हैं, बीमारी की ओर अंगुलि निर्देश करो, चेताओ, सावधान करो। पर चेताने वाला भी क्या करे? कैसे रोके? मानवीय प्रकृति बड़ी विचित्र है। ___एक गाड़ी में मूंगफली के बोरे लदे हुए थे। पीछे-पीछे एक राहगीर चल रहा था। एक बोरे में छेद हुआ और उससे मूंगफली नीचे गिरने लगी। वह राहगीर जमीन से उन्हें बटोर कर खाने लगा। खाता चला गया। एक मोड़ पर गाड़ी रुकी। गाड़ीवान ने देखा, बोला-'अरे भले आदमी! तुमने मुझे चेताया नहीं?' वह बोला-'तुम नहीं जानते। छिद्रों का लाभ उठाने वाले अधिक होते हैं, चेताने वाले कम होते हैं।' जहां समाज में ऐसी मनोवृत्ति होती है, जहां सावधान करने की बात नहीं होती वहां फिर छिद्र नहीं रहते, बड़े-बड़े बघारे पड़ जाते हैं। आज जो चारित्रिक पतन हो रहा है, समस्याएं उलझ रही हैं, उनका मूल कारण है नियंत्रण और नियंता का अभाव। व्यक्ति का अपना नियंत्रण हो या उत्तम नियंता हो तो समस्या न बने किन्तु नियंता के आसन पर बैठने वाले स्वयं अपना घर भरने, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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