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________________ ५०४ महावीर का पुनर्जन्म यह सिद्धान्त ठीक है, किन्तु केवल सिद्धान्त से नहीं, प्रयोग से परिणाम आता है। एक योगी ने लिखा-जो व्यक्ति वैदिक संध्या की ठीक से उपासना करता है, वह शरीर और मन-दोनों से स्वस्थ रहेगा। वैदिक संध्या में तीन रंगों का विधान है-लाल, नीला और सफेद । ब्रह्मा, विष्णु और महेश–इनके ये तीन रंग हैं। कृष्ण का वर्ण है श्याम। श्याम का अर्थ काला नहीं है। बहुत बार श्याम का अर्थ काला कर दिया जाता है पर वस्तुतः उसका अर्थ नीला है। महेश का नीला, ब्रह्मा का लाल और शिव का रंग सफेद है। वैदिक संध्या का तात्पर्य है-जो इन तीनों वर्गों का संध्या के समय ध्यान करता है, वह शरीर और मन-दोनों दृष्टियों से स्वस्थ रहता है। संदर्भ नमस्कार महामंत्र का - जैनों का महामंत्र है-नमस्कार महामंत्र। नमस्कार महामंत्र का ध्यान पांच वर्षों के साथ किया जाता है। यदि व्यक्ति प्रतिदिन आधा घंटा तक निर्धारित रंगों के साथ नमस्कार महामंत्र का ध्यान करे तो तीन मास बाद उसे लगेगा-मैं हर दृष्टि से ठीक हो रहा हूं। मेरे स्वास्थ्य, प्रसन्नता और शान्ति में वृद्धि हो रही है। हम नमस्कार महामंत्र की माला जपने को रूढ़ि न बनाएं। इसको वैज्ञानिक रूप दें, एक नया प्रायोगिक रूप दें। आज माला को एक रूढि का सा रूप मिल रहा है। व्यक्ति माला जपने बैठता है और जल्दी से जल्दी उसे पूरा कर लेना चाहता है। बहुत लोग कहते हैं-माला जपने में कितना समय लगता है! थोड़े समय में ही एक माला का जप हो जाता है। अनेक लोग गर्व की भाषा में इस प्रकार भी कहते हैं-मैं पांच मिनट में पूरी माला जप लेता हूं। पांच मिनट में एक सौ आठ बार नमस्कार महामंत्र का जप! क्या यह जप का सही तरीका है? लगता है. हमारी गति कम्प्यूटर से भी तेज हो गई है। वस्ततः इतनी जल्दबाजी में माला जपना जप की सम्यक् विधि नहीं हो सकती। अनेक लोग शिकायत करते हैं-महाराज! रोज माला जपते हैं पर उसका कोई लाभ नहीं मिलता। जब जप की विधि ही सही नहीं है तो लाभ कैसे मिलेगा? निष्ठा और सम्यक् विधि से किया गया जप ही सार्थक परिणाम देने वाला होता है। - हम नमस्कार महामंत्र के जप के साथ रंगों का प्रयोग करें। इससे रंग और लेश्या का संतुलन सधेगा, शारीरिक, मानसिक और भावात्मक संतुलन सधेगा। नमस्कार महामंत्र को संख्या के आधार पर गिनने की बात का उतना मूल्य नहीं है, जितना मूल्य इस बात का है कि जप किस ढंग से किया जा रहा है। हम संख्या पर न अटकें। जितना करें. इतने अच्छे ढंग से करें कि मन उसमें पूरी तरह नियोजित हो जाए। खाना खाया और स्वाद नहीं आया तो क्या खाना खाया? जप किया, ध्यान किया और आनन्द नहीं आया तो जप करने का क्या अर्थ रहा? जप करें तो यह लगना चाहिए-मन बहुत शान्त रहा, भावना बहुत पवित्र रही। यदि ऐसा नहीं लगता है तो मानना चाहिए-जप में कहीं कमी है। सम्यग विधि और एकाग्रता के साथ किया गया नप कभी निष्फल नहीं होता। उससे व्यक्ति में यह अनुभूति जागती है-मेरा विकास हो रहा है, शान्ति और पवित्रता का स्रोत प्रस्फुटित हो रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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