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महावीर का पुनर्जन्म
शिकारी जंगल में शिकार की टोह मे घूम रहा था । उसे एक हरिणी दिखाई दी। उसने हरिणी की ओर निशाना साधा। हरिणी ने भावुक स्वर में
कहा
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मांसमखिलं स्तनवर्जितांगाद्, वागुरिक! यामि कुरु प्रसादम् । शस्यकवलग्रहणादभिज्ञाः,
आदाय
मां मुञ्च अद्यापि
मन्मार्गवीक्षणपरा: शिशवो मदीयाः ।।
'शिकारी! तुम मेरा पूरा माँस ले लो, केवल दो स्तनों को छोड़ दो। मैं एक बार अपने बच्चों के पास जाना चाहती हूं क्योंकि मेरे बच्चे बहुत छोटे हैं । वे अभी तक घास चरना भी नहीं जानते। वे मेरी बाट जोह रहे हैं-कब मां आती है? कब स्तनपान कराती है? इसलिए हे शिकारी! तुम कृपा करो और कुछ देर के लिए मुझे छोड़ दो ।'
यह बात चिन्तन के स्तर पर नहीं, केवल भावना के स्तर पर ही पैदा हो सकती है ।
विकास हो नई शाखा का
हम इस सचाई को समझें- हमारा आचरण और व्यवहार मन से जुड़ा हुआ नहीं है। बार-बार यह कहा जाता है-मन ही ऐसा है? मन पकड़ में ही नहीं आता । वह पकड़ में कैसे आएगा? जो काम मन का ही नहीं है, हम उसका आरोपण मन पर कर रहे है। हमें मन से आगे पहुंचना होगा, लेश्या के स्तर पर, भावना के स्तर पर पहुंचना होगा। उस स्तर को पकड़ कर ही हम समस्या का समाधान कर सकते हैं। पूरे आचार- शास्त्र और व्यवहार - शास्त्र की मीमांसा भावना के स्तर पर की जा सकती है। आज विज्ञान की एक पूर्ण शाखा बन गई - मनोविज्ञान (साइकोलाजी ) । यह बहुत भ्रामक शब्द बन गया है । हमारे आचरण और व्यवहार की व्याख्या मन के स्तर पर नहीं की जा सकती । यदि हम मन के स्तर पर व्याख्या करेंगे तो भ्रांति के चक्रव्यूह में फंस जाएंगे। जैसे मनोविज्ञान विज्ञान की एक शाखा है वैसे ही एक नई शाखा का विकास होना चाहिए ।
लेश्या का मतलब है भावविज्ञान। पहला नंबर होना चाहिए भावविज्ञान का और दूसरे नंबर पर रहना चाहिए मनोविज्ञान । हम भावविज्ञान को छोड़कर मनोविज्ञान के आधार पर अपने व्यक्तित्व का अंकन करना चाहेंगे तो भ्रांतियां बढ़ती चली जाएंगी। आज मनोविज्ञान के संदर्भ में जो चल रहा है, क्या हम उसे आंख मूंद कर मान लें? स्वीकार कर लें? ऐसा करना ठीक नहीं होगा। हमारे पास ज्ञान और चिन्तन की बहुत बड़ी राशि है और वह हमें विरासत में मिली है। हम इसका उपयोग करें और मनोविज्ञान के सामने इस बात को प्रस्तुत करें - मनोविज्ञान के आधार पर व्यक्तित्व का जो अंकन किया जाता है, उसकी जो चिकित्सा की जाती है, वह तब तक सफल नहीं होगी जब तक भावना का बल उसके साथ नहीं जुड़ेगा । मनोविज्ञान की सफलता के लिए भावविज्ञान का मूल्यांकन और उपयोग अनिवार्य है ।
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