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________________ कर्मवाद ४७५. जीवन से जुड़ा है कर्म हर समस्या का समाधान कर्मशास्त्र में उपलब्ध है। चाहे शरीर की व्याख्या का प्रश्न है, इन्द्रियों की व्याख्या का प्रश्न है, निरन्तर उतरते-चढते भावों का प्रश्न है-कर्मशास्त्र में उनके समाधान-सूत्र उपलब्ध हैं। जीवन के प्रत्येक क्षण की व्याख्या के साथ कर्म जुड़ा हुआ है। कर्म हमारे जीवन को इतना प्रभावित करने वाला है फिर भी उसके बारे में हमारी जानकारी नहीं है। जो जीवन से जुड़ा हुआ है, वह कैसे बन्धता है, इस बारे में हम कभी सोचते ही नहीं। यह सचमुच आश्चर्य की बात है। हम प्रवृत्ति करते चले जाते हैं किन्तु नहीं सोचते-हम अपने आपको क्यों बांध रहे हैं। मकड़ी जाला बुनती चली जाती है और वह स्वयं भी उसमें फंसती चली जाती है। यह रेशम का ऐसा कीड़ा है, जो अपनी मौत के लिए स्वयं कोष बना रहा है। यदि वह अपने लिए कोष न बनाए तो उसे अकाल मौत से न मरना पड़े, उसे गरम-गरम पानी में उबलना न पड़े। आज कस्तूरी मृग बहुत मारे जा रहे हैं। यदि कस्तूरी मृग अपने लिए नाभा नहीं बनाते तो शायद उनकी इतनी हत्याएं नहीं होती। आज कुछ ऐसा ही हो रहा है। आदमी कर्म के रहस्यों को जाने बिना इस प्रकार का आचरण करता चला जा रहा है और स्वयं को बांधने के लिए जाल बुनता चला जा रहा है। किसी व्यक्ति को फंसाने के लिए दूसरा आदमी एकाध-बार जाल भी फैलाता है तो व्यक्ति क्रुद्ध हो उठता है। वही व्यक्ति स्वयं अपने लिए दिन-रात जाल बिछाता चला जा रहा है। वह इस बारे में कभी सोचता ही नहीं है और इसीलिए वह समस्याओं के समाधान में सफल नहीं हो पा रहा है। कर्मवाद को समझने का अर्थ जैन दर्शन में कर्मवाद का जितना वैज्ञानिक विश्लेषण हुआ है उतना किसी अन्य दर्शन में प्राप्त नहीं है। यह एक सचाई है, जिसे कोई भी व्यक्ति अस्वीकार नहीं कर सकता। जैन आचार्यों ने कर्मवाद के द्वारा जिस प्रकार जीवन के रहस्यों को उद्घाटित किया है, जीवन की ग्रन्थियों का विमोचन किया है, वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। यदि हम इसे समझने का प्रयत्न करें, उसे वैज्ञानिक स्तर पर प्रस्तुति दें तो जैन धर्म के इस महान् सिद्धांत को व्यापक स्वरूप मिल जाए। जैन दर्शन को कुछ सिद्धांत विरासत में मिले हैं-अहिंसावाद, अनेकान्तवाद और अपरिग्रह। जैन दर्शन के कर्मवाद, आत्मवाद आदि कुछ ऐसे सिद्धांत हैं जो अपनी मौलिक विशेषता रखते हैं। कर्मवाद की गहराइयों में जाकर ही हम अपने आपको समझ सकते हैं, अपने जीवन की समस्त घटनाओं के साथ ताल-मेल बिठा सकते हैं। कर्मवाद को समझने का अर्थ है-उज्ज्वल भविष्य के निर्माण का पथ प्रशस्त करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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