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________________ महावीर का पुनर्जन्म ४६० निष्कर्ष यह आता है-सुख की ओर ले जा रही है। ऐसा लगता है - यह मार्ग सुख की ओर ले जा रहा है। किन्तु निष्कर्ष यह आता है - वह दुःख की ओर ले जा रहा है। मां छोटे बच्चे को स्नान कराती है। उसे स्नान कराना बड़ा मुश्किल होता है । बच्चा रोने-चिल्लाने लग जाता है। वह सोचता है-मां मुझे कितना कष्ट दे रही है ! माता-पिता बच्चे को स्कूल भेजते हैं। बच्चे को प्रारम्भ में कितना कठिन लगता है। वह सोचता है - स्कूल में क्या जाना है मानो नरक में ही जाना है । पुत्र ने कहा - ' मां ! मैं स्कूल नहीं जाऊंगा ।' 'क्यों? क्या तुम्हारे पास पेंसिल नहीं है?" 'पेंसिल तो है ।' 'कापी और पुस्तक नहीं है?" 'वे भी हैं ।' 'तो क्या नहीं है?" 'मां ! सब कुछ है पर मैं स्कूल जाना नहीं चाहता, मुझे वहां जाना अच्छा नहीं लगता ।' बहुत सारे काम ऐसे हैं, जो आपातकाल में बड़े सुख देने वाले लगते हैं पर परिणामकाल में वैसे नहीं होते। बहुत सारे काम ऐसे होते हैं, जो आपातकाल में बहुत दुःखद लगते हैं पर परिणामकाल में सुखद होते हैं । धार्मिक लोगों ने यह विवेक किया, इस सचाई को पकड़ा और काल को दो भागों में बांट दिया-- आपातकाल और परिणामकाल । प्रवृत्ति के दो प्रकार बन गए - आपातभद्र और परिणामभद्र । आपातभद्र वह होता है, जो पहले बहुत अच्छा लगता है किन्तु उसका परिणाम अच्छा नहीं होता । परिणामभद्र वह होता है, जो पहले ज्यादा अच्छा नहीं लगता किन्तु उसका परिणाम बहुत सुखद होता है। हम इस सचाई को एक सामान्य घटना से समझें। एक छोटा बच्चा अपनी मां के साथ दर्शन करने आया। बच्चे के हाथ में एक रुपये का नोट था । मैंने पूछा - 'इसका क्या करोगे?" बच्चा बोला- 'चुटकी खरीदूंगा, मीठी सुपारी खरीदूंगा।' 'क्यों खरीदोगे?" 'मुझे वह बहुत अच्छी लगती है ।' मैंने उसकी मां से पूछा- 'क्या तुम उसे चुटकी, गुटका आदि खिलाती हो ?" मां बोली- 'महाराज ! हम घर पर इसे कभी नहीं खिलाते। आज किसी लड़के ने इसे दे दी। अब यह उस चुटकी की जिद्द पकड़े हुए है।' जर्दा, पान पराग, पान मसाला, चॉकलेट और टॉफियां – ये सब चीजें खाने में अच्छी लगती हैं पर इनका परिणाम क्या हैं? जो मां अपने बच्चों को ऐसी आदतों से नहीं बचाती, क्या वह अपने बच्चे का नुकसान नहीं करती? जो बच्चा इन चीजों को ज्यादा खाएगा, उसका पाचन तंत्र और लीवर खराब हो जाएगा, दांत खराब हो जाएंगे। आंत खराब होने का अर्थ है अनेक बीमारियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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