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________________ पहले कौन? ४४६ मूढ़ता है चेतना का विप्लव हम इस सचाई को समझें-जब तक दुःख पैदा करने वाले तत्त्व, जो भीतर में बैठे हैं, उनको मिटाया नहीं जाएगा तब तक बाहरी साधनों से हमारा दुःख कभी मिट नहीं पाएगा। जो व्यक्ति दुःखों को कम करना चाहता है, उसे सबसे पहले मोह पर ध्यान देना होगा, मूर्छा पर ध्यान देना होगा। मूढ़ता एक विपर्यास पैदा करती है। भगवान महावीर ने आचारांग सूत्र में बतलाया-मूढ़ आदमी सुख पाने के लिए जाता है किन्तु वह दुःख पैदा कर लेता है। नासमझ आदमी सुविधा के स्थान पर कठिनाई को पैदा कर लेता है। मूढ़ता का मतलब है चेतना का विप्लव, चेतना का विपर्यास । संस्कृत की मुहुच वैचित्र्ये-धातु से यह शब्द निष्पन्न हुआ है। यह चेतना का विकार है। चेतना का विकार इतना प्रबल बनता है कि व्यक्ति को सब कुछ उलटा दिखाई देता है। सफेद रंग भी मूढ़ आदमी को पीला दिखाई देने लग जाता है, पीला रंग हरा दिखाई देने लग जाता है। तर्कशास्त्र में कहा गया-सर्प को रस्सी मान लिया जाता है और रस्सी को सर्प मान लिया जाता है। जैन दर्शन की दृष्टि में यह दृष्टि का विपर्यास है। यह मूर्छा दर्शन के मिथ्यात्व को पैदा कर रही है, दृष्टि को विपरीत बना रही है। समस्या यह है-जितने दुःख को पैदा करने वाले घटक हैं, दुःख को बढ़ाने वाले तत्त्व हैं, वे व्यक्ति को प्रिय लगते हैं, अच्छे और लुभावने लगते हैं। इस स्थिति में दुःख कम होंगे, यह सम्भव नहीं लगता। भगवान महावीर ने कहा-यदि दुःख को मिटाना चाहते हो तो दृष्टिकोण को सम्यक् बनाओ। जब तक दृष्टि मूढ़ बनी हुई है मूर्छित और ग्रस्त है तब तक दुःख को मिटाने की बात सफल नहीं हो सकती। दुःख मुक्ति का अमोघ सूत्र दुनिया के लोगों ने, समाज और राजनीति के लोगों ने पदार्थ, अन्न आदि-आदि बाह्य पदार्थों के द्वारा दुःखों को मिटाने का प्रयत्न किया है, कर रहे हैं किन्तु दुःखों का जो समुद्र भीतर भरा पड़ा है, उसे वे कैसे मिटा पाएंगे? उस दुःख के समुद्र को पार करने का उपाय धर्म के क्षेत्र में उद्घाटित हुआ है। धर्म के आचार्यों ने सारे तत्त्वों को समग्रता से पकड़ा। उन्होंने कहा--'जब तक तुम मोह को नहीं मिटाओगे तब तक दुःख नहीं मिटेगा।' जब मोह मिटेगा, दुःख मिट जाएगा। समग्र दुःख को मिटाने का उपाय है-अमूढ़ अवस्था, मोह-विलय। मोह-त्याग से ही दुःख के मूल को विनष्ट किया जा सकता है। उससे सर्वथा मुक्ति का दूसरा कोई उपाय नहीं है। जिसका मोह मिट गया, उसका दुःख मिट गया। मोह-विलय दुःख मुक्ति का अमोघ सूत्र है। जो व्यक्ति दुःख को मिटाना चाहता है, उसे मोह-त्याग के पथ पर अग्रसर होना ही होगा। ऐसा करके ही व्यक्ति दुःख की परम्परा को समाप्त कर सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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