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________________ वह अपने देश में चला जाता है ४३७ दुनिया का नियम : अपना नियम ____ हम केवल मानवीय जीवन के नियमों के आधार पर सारी सचाइयों को तोलना चाहते हैं। हमारे सामने वही एक तराजू है, वे ही नियत बटखरे हैं और हम उनसे इस विराट विश्व को तौलना चाहते हैं। यही समस्या है। हम दुनिया के नियमों को नहीं जानते किन्तु उसे अपने नियमों के संदर्भ में जानना चाहते हैं। विश्व विराट है और उसके ऐसे अनेक नियम हैं, जिनसे हम परिचित नहीं है, हमें जिनकी स्मृति ही नहीं है। एक व्यक्ति मर गया। परिवार के लोग और मित्र उसकी पत्नी को सान्त्वना देने उसके घर इकट्ठे हुए। उन्होंने पूछा-'मरने का क्या कारण बना? क्या कोई बीमारी थी?' पत्नी ने कहा-'नहीं, वे बीमार नहीं थे।' लोग पुनः बोले-'फिर अचानक यह दुर्घटना कैसे हो गई।' पत्नी बोली-'वे बहुत भुलक्कड़ थे। मुझे लगता है-वे सांस लेना भूल गए, इसलिए मर गए।' हम जानते हुए भी सचाइयों को भूल जाते हैं। अगर मोक्ष में जाकर चमचेड (चमगादड) की तरह लटक जाना है और सदा उस स्थिति में बने रहना है तो निगोद में जाकर क्या करना है? हम सोचें-एक व्यक्ति निगोद में चला गया। वह पत्थर की भांति अनंतकाल तक जड़ जैसा जीवन जीता रहा। वह किससे बात करेगा? कहां मनोरंजन केन्द्र में जाएगा। कहां टी.वी. देखेगा? कहां ताश, चौपड़ और शतरंज खेलेगा? वहां न बोलना है न चलना है। स्थावर जीवों का जीवन कैसा जीवन है? पांच-दस वर्ष तक नहीं, सौ वर्ष तक नहीं, किन्तु अनंत काल तक केवल मूर्छा का जीवन जीना है। अनन्त काल तक निगोद में पड़े रहना, जन्म-मरण के चक्र में परिभ्रमण करना, एकदम मूर्छा का जीवन जीना, कष्टमय जीवन जीना जड़ जैसा जीवन जीना मान्य है किन्तु अशरीर होना मान्य नहीं है। यह कैसी विचित्र बात है? देखें संसार-चक्र व्यक्ति यह नहीं सोचता-कब-कब मनुष्य समाज का अंग बन पाता है? इस पूरे संसार चक्र में कभी-कभी ऐसा समय आता है, व्यक्ति आदमी बनता है। इसीलिए कहा गया-माणुसे खलु दुल्लहे-मनुष्य का जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है। मनुष्य का एक समाज है किन्तु पशुओं का कौनसा समाज है? क्या गाय-भैंसों ने अपना समाज बनाया है? क्या वे अपने दुःख सुख की बातें करते हैं? क्या उन्हें भी मनोरंजन के साधन सुलभ हैं? भैंसे और गधे जीवन भर भार ढोते रहते हैं। कभी मिट्टी ढोते हैं, कभी पत्थर ढोते हैं और कभी कछ ढोते हैं। कोल्ह का बैल कभी उससे मुक्त हो पाता है? हम पूरे संसार चक्र को देखें। इस संसार चक्र में व्यक्ति अनन्त-अनन्त बार जन्म लेता है, मरता है। उसे कुछेक बार मनुष्य का जन्म प्राप्त होता है। वह कभी-कभी देवता बन जाता होगा किन्तु अनन्त काल तक निम्न गतियों में भटकना पड़ता है। जहां न आनन्द होता है, न मनोरंजन के साधन, कुछ भी नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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