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पढ़ें अपने आपको भी
आज की शिक्षा की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि उसमें ज्ञाता के विषय में कुछ नहीं बताया जाता। इसी का परिणाम कि वर्तमान में हिंसा और आतंकवाद बढ़ता जा रहा है। यह ज्ञाता को विस्मृत कर देने की फलश्रुति है ।
गणधर गौतम ने भगवान महावीर से पूछा - 'भंते! स्वाध्याय से क्या लाभ होता है?' भगवान ने कहा - ' गौतम! स्वाध्याय से ज्ञान का आवरण हटता है ।' ऐसा प्रतीत होता है कि लौकिक विद्या के विकास के लिए बायां मस्तिष्क उत्तरदायी है और अपने आपको पढ़ने के लिए दायां मस्तिष्क उत्तरदायी है । आज कठिनाई यह है कि एक आवरण तो हट गया, परंतु दूसरा आवरण नहीं हटा है। दायीं ओर का आवरण वैसा का वैसा है। इसीलिए सहिष्णुता, सौहार्द और अनुशासन का विकास नहीं हो रहा है ।
स्वाध्याय का अर्थ है - इस आवरण को हटाकर संतुलन को कायम करना। स्वाध्याय करने वाले इस बात पर ध्यान दें कि वे सामायिक करते हैं, सूत्र पढ़ते हैं, जाप करते हैं, ध्यान करते हैं, पर अनुप्रेक्षा नहीं करते । स्वाध्याय के तीन अंग है-वाचना, पृच्छना और अनुप्रेक्षा । अनुप्रेक्षा में मनन, निदिध्यासन आदि सब आते हैं । भगवान से पूछा गया - अनुप्रेक्षा से क्या लाभ होता है? भगवान ने कहा - अनुप्रेक्षा करने वाला आयुष्य कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों को प्रकंपित कर देता है । वह मोहनीय और अशुभ कर्मों को झकझोर देता है । अनुप्रेक्षा से अर्थ सहस्र-गुणित ज्ञात होता चला जाता है।
माना गया है कि एक अक्षर के अनन्त पर्याय होते हैं। जो व्यक्ति वर्णमाला पढ़ जाए और उस पर निरंतर अनुप्रेक्षा करता रहे तो सरस्वती का सारा भंडार उसके लिए खुल जाता हैं ।
जैनाचार्यो ने मंत्र का विधान किया। उसमें एक मंत्र है वर्णमाला का । उसमें विधान किया गया है कि सोलह स्वरों की स्थापना अमुक स्थान पर करो, व्यंजनों की स्थापना अमुक स्थान पर करो और आठ अक्षरों की स्थापना मुंह पर करो। फिर उस पर ध्यान करो । यह सरस्वती का बहुत बड़ा मंत्र है । 'अर्हम्' बहुत बड़ा मंत्र है। इसमें सारा ज्ञान समाविष्ट है। यदि अर्हम् की अनुप्रेक्षा की जाए तो 'अ' और 'ह' के अतिरिक्त विश्व का और ज्ञान है क्या? सारा ज्ञान 'अ' और 'ह' का मध्यवर्ती है ।
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हम पढ़ें, अध्ययन करें और फिर स्वाध्याय करें । हम ज्ञाता और ज्ञेय - दोनों को जानें। यह सामंजस्य परिपूर्णता की ओर ले जाएगा। स्वाध्याय के जो पांच प्रकार हैं, वे अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं । स्वाध्याय वाचना से प्रारंभ होता है और अन्त में आती है धर्मकथा । जब वाचना आदि चारों परिपुष्ट हो जाते हैं तब धर्मकथा अर्थात दूसरों को ज्ञान कराने का अधिकार प्राप्त होता है ।
उत्तराध्ययन सूत्र में स्वाध्याय का सर्वांगीण क्रम प्रतिपादित है । उस पर मनन करें। बीच में कहीं अटकें नहीं । अटकने का अर्थ है कहीं का न रहना । इस क्रम पर अनुप्रेक्षा करें। यदि ऐसा किया जाता है तो स्वाध्याय जीवन - विकास के लिए बहुत मूल्यवान अवदान सिद्ध हो सकता है ।
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