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________________ ३६२ महावीर का पुनर्जन्म बीज बरगद का पेड़ बना देता है। दुनिया में जितना निर्माण दिखाई दे रहा है, वह सारा का सारा जीव का निर्माण है। उसने सृष्टि को बहुविध बना दिया। एक के बाद एक नई प्रजातियां नष्ट हो गई और कितनी नई जातियां और प्रजातियां पैदा हो गई। जीव और पुद्गल का ऐसा योग मिल गया, उनमें ऐसा समझौता हो गया किया कि वे नए-नए रूप बनाते ही चले जा रहे हैं। जैन दर्शन के अनुसार जितना दृश्य जगत है, वह सारा का सारा जीव के द्वारा बनाया हुआ है। मेरे हाथ में एक पुस्तक है। प्रश्न हुआ-यह पुस्तक किससे बनी?' उत्तर दिया गया-'कागज से बनी।' 'कागज किससे बना?' 'पेड़ से बना।' 'पेड़ को किसने बनाया?' 'जीव ने।' हम पारिभाषिक शब्दावली में कह सकते हैं-पत्थर पृथ्वीकाय के जीवों का शरीर है, पुस्तक वनस्पतिकाय के जीवों का शरीर है। जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वह जीव का शरीर है। ऐसा कोई भी पदार्थ नहीं है, जो दिखाई दे रहा है किन्तु जीव का शरीर नहीं है। हमने अनेक पदार्थ देखे हैं, खाए हैं, हम अनेक पदार्थों को पहनते हैं, ओढ़ते हैं। क्या उनमें ऐसा एक भी पदार्थ है, जो जीव का शरीर नहीं है? प्रत्येक दृश्य पदार्थ या जीवित शरीर है या जीव-त्यक्त शरीर है। दो शब्द प्रसिद्ध हैं-बद्धेलगा और मुक्केलगा। कुछ पदार्थ ऐसे हैं, जो अभी जीव से जुड़े हुए नहीं है। यानी कुछ पदार्थ जीव के प्रयोग से परिणत हैं और कुछ प्रयोग से मुक्त हैं। स्थूल सृष्टि का निर्माता है जीव हमारे दो जगत् हैं—सूक्ष्म जगत और स्थूल जगत। जितना भी सूक्ष्म से स्थूल हुआ है, अव्यक्त से व्यक्त बना है वह सारा जीव के शरीर द्वारा हुआ है। जीव एक बड़ा शिल्पी है। वह सूक्ष्म परमाणुओं को लेता है, अदृश्य परमाणुओं को ग्रहण करता है और उन्हें अपना शरीर बनाकर स्थूल बना लेता है फिर उन्हें छोड़कर दुनिया को भर देता है। जो अनन्त-अनन्त वर्गणाएं हैं वे अपने आप स्थूल नहीं बनेंगी। दृश्य जितना भी होगा, वह स्थूल ही होगा। सारा का सारा दृश्य जगत जीव का शरीर होकर ही दृश्य बनेगा। एक भी ऐसा परमाणु नहीं है जो जीव का शरीर नहीं बना और दृश्य बन गया, स्थूल बन गया। यह दृश्य जगत की बात है, स्थूल जगत की बात है। अदृश्य जगत की बात अलग है। यहां प्रश्न देखने का नहीं है। स्थूल जगत और दृश्य जगत् के होने का है, सूक्ष्म की स्थूल परिणति का है। स्थूल सृष्टि का निर्माण है जीव। स्थूल जगत में स्थूल बात का ही मूल्य होता है। सृष्टि-निर्माण के दो घटक नाना रूपों को अभिव्यक्त करने वाली शक्ति है व्यंजन शक्ति। जीव और पुद्गल-इन दो द्रव्यों में व्यंजन शक्ति है। व्यंजन पर्याय या व्यंजन शक्ति का निर्माण इन दो द्रव्यों के योग में है। अकेला पुदगल भी रूपों का निर्माण नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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