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________________ २० महावीर का पुनर्जन्म आसन-सिद्धि से इन द्वन्द्वों पर विजय पाई जा सकती है। ऐसे कछ आसन भी हैं। वीरासन धृति को बढ़ाने वाला आसन है। सिंहासन, जिसका जैन मुनियों की साधना पद्धति में मुख्य उल्लेख हुआ है, शरीर एवं मन की क्षमता को बढ़ाने वाला है। इन दोनों आसनों से धृति का विकास होता है, शरीर एवं मनोबल का विकास होता है, कष्टों को झेलने की क्षमता प्राप्त होती है। धृति और श्रामण्य ___चरक का महत्वपूर्ण कथन है-बुद्धि, स्मृति और धृति-ये तीन प्रज्ञापराध को रोकने वाले तत्व हैं। बुद्धि और स्मृति एक नहीं है। स्मृति करना बद्धि का काम नहीं है। बहत याद रखने वाला स्मतिमान हो सकता है. बद्धिमान नहीं हो सकता। वह स्मृतिमान् है जिसकी स्मृति-शक्ति अच्छी है। कंठस्थ करना, याद करना स्मृति का काम है। चरक के टीकाकार चक्रपाणी दलहन ने धृति की व्याख्या करते हुए लिखा-मन का नियन्त्रण करने वाली बुद्धि धृति है। सारा नियंत्रण धृति के द्वारा होता है। आचार्य भद्रबाहु कृत दसवैकालिक की नियुक्ति का बहुत सुन्दर प्रसंग है। पूछा गया-श्रामण्य किसके होगा? श्रमण जीवन को कौन निभा सकेगा? उत्तर दिया गया जिसमें धृति है, वह श्रामण्य को पाल पाएगा। जिसमें धृति नहीं है, वह सामान्य कष्टों से भी घबरा जाएगा, श्रामण्य से च्युत हो जाएगा। धृति के बिना श्रामण्य का पालन संभव नहीं है। परीषहों को झेलने के लिए धृति का विकास आवश्यक है। परीषह प्रविभक्ति अध्ययन का उद्देश्य केवल भूख-प्यास को सहन करना नहीं है। उसका यह प्रतिपाद्य ही नहीं है। उसका प्रतिपाद्य है-भूख को सहन कर सके वैसी धृति का विकास करना, प्यास को सहन कर सके वैसी धृति का विकास करना। आचार्य कालूगणी का संवत १९८८ का चौमासा बीदासर था। उस वर्ष वर्षा कम हुई थी। गर्मी भयंकर थी। संवत्सरी के दिन संत चौविहार उपवास करते हैं। अनेक श्रावकों ने भी चौविहार उपवास किया, पौषध किए। पूरे चौबीस घंटे निराहार और निर्जल रहना। अनेक व्यक्ति प्यास से व्याकुल हो उठे। अनेक संत अपने हाथ में कम्बल उठाए इधर से उधर ठंडे स्थान की गवेषणा में घूमते रहे। धृति के बिना यह कभी संभव नहीं कि उस भयंकर रात्रि में कोई पानी न पीए। अनेक ऐसे श्रावक, जिनमें धृति नहीं थी, विचलित हो गए। अनेक श्रावकों ने रात्रि में पौषध भंग कर पानी पी लिया। धृति कमजोर होने के कारण ऐसी स्थिति बन जाती है। मनोबल ही सब कुछ होता है। मनोबल गिरा कि आदमी गिरा। मैंने सबसे छोटे समण से कहा-'गर्मी आ रही है, रात को पानी नहीं पीना है।' उसने कहा-'पानी नहीं पीऊंगा।' 'क्यों नही पीओगे?' 'क्योंकि पानी पीना नियम के विरुद्ध है।' 'प्यास को कैसे सहन करोगे?' 'नहीं पीना है तो नहीं पीऊंगा, प्यास को सहन करूंगा।' Jain Education International www.jainelibrary.org For PrivateRPersonal us
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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