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महावीर का पुनर्जन्म
__गुरु से शिष्य से पूछा- क्या तूने तीनों का अभ्यास किया है?' शिष्य बोला-'नहीं। मैंने केवल ‘अकरण' का संकल्प मात्र लिया है। वर्षों से उसे निभा रहा हूं, पर अनुभव शून्य हूं।'
गुरु बोले-'भाव शुद्धि के बिना कुछ नहीं हो सकता। यह नितांत आंतरिक पक्ष है। दूसरा व्यक्ति केवल बाह्य को पकड़ता है, पकड़ सकता है। अन्तर को वह जान नहीं सकता। व्यक्ति स्वयं ही उसे जान पाता है।' भाव शुद्धि का प्रश्न नितांत वैयक्तिक है। कालसौकरिक बड़ा कसाई था। वह प्रतिदिन पांच सौ भैसें मारता था। उसे कुएं में डाल दिया गया। माना गया कि वहां भैस कैसे मारेगा? कए में भैस कहां? कालसौकरिक के 'अकरण' तो हो गया, पर मन में भाव हिंसा का ना चल रहा था। उसने मिट्टी के भैसे बनाना प्रारंभ किया और एक-एक कर पांच सौ भैंसों को मार डाला। भावना से उसने अपना काम कर डाला। इसे कौन रोक सकता है? सत्ता, राज्य और दंड की शक्ति भी वहां नाकामयाब होती है। सत्ता, राज्य और दंड की शक्ति शरीर पर काबू कर सकती है, भावना पर नहीं। यही तो लौकिक और अलौकिक, व्यावहारिक और आध्यात्मिक की भेदरेखा है। शरीर को रोका जा सके, यह है लौकिक या व्यावहारिक। जो भावों पर नियंत्रण कर सके, वह है अलौकिक या आध्यात्मिक। धर्म या अध्यात्म के सिवाय कोई शक्ति भावों को नहीं बदल सकती, रोक नहीं सकती। यदि यह बात हृदयंगम हो जाए तो व्यक्ति धर्म और अध्यात्म का सही मूल्य आक सकता है।
आज धर्म का मूल्य भी बाहरी बना दिया गया है। सारा मूल्यांकन व्यवाहारिक बातों से होने लगा है कि वह कितनी सामायिक करता है? क्या-क्या उपासनाएं करता है? कौन कौन से क्रियाकांड करता है? आदि-आदि। ये सारे धर्म तक पहुंचने के माध्यम हैं पर मूल है भावशुद्धि। यहीं से परिवर्तन प्रारंभ होता है।
तीसरा तत्त्व, जो अनुभव को जगाता है, वह है परमात्मा के साथ तादात्म्य जोड़ लेना। प्रत्येक धार्मिक व्यक्ति का अपना इष्ट होता है, आदर्श होता है। उसके साथ तदात्म हो जाना, तन्मय हो जाना, यह अपेक्षित है।
___ 'अर्हम्' का कोरा जप नहीं करना है। ‘णमो अरहंताणं' बोलते समय अपने आपको अर्हत् के रूप में अनुभव करना है। यह है तदात्म होने की प्रक्रिया।
गुरु ने शिष्य से कहा- 'तुम 'अकरण' के साथ इन दोनों बातों-भावशुद्धि और इष्ट के साथ तादात्म्य को जोड़ दो। फिर देखो कि जो होना है, वह घटित होता है या नहीं?' पूर्ण प्रक्रिया को जाने बिना, पूरी बात को समझे बिना कार्य होता नहीं है। अधूरी बात
एक विद्यार्थी के पास दो पेंसिलें थीं-एक घरवाली और एक स्कूलवाली। वह दोनों पेंसिले लाया था कक्षा में। एक गुम हो गई। वह कक्षा में उदास बैठा
रहा। अध्यापक ने पूछा-'अरे! उदास क्यों हो? क्या हो गया?' विद्यार्थी ने Jain Education International For Private & Personal Use Only
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