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________________ २७८ महावीर का पुनर्जन्म उदास क्यों हो गई?' उसने कहा-'महाशय! देखो, मेरे इतने सुंदर रुमाल पर कैसा धब्बा हो गया है?' जॉन रस्किन ने कहा-'यह रुमाल मुझे दे दो।' युवती ने रुमाल जॉन रस्किन को दे दिया। रस्किन जितने बड़े साहित्यकार थे उतने ही बड़े चित्रकार थे। रस्किन कुछ मिनट के लिए एकान्त में गए, उस रुमाल पर एक चित्र बनाया और लौट आए। युवती से कहा-'बहन! यह लो तुम्हारा रुमाल ।' युवती रुमाल को देखकर बोली- 'यह रुमाल मेरा नहीं है। मेरे रुमाल में धब्बा था। वह धब्बा कहां है? आप मुझे मेरा रुमाल दें। यह किसी और को दे दें।' जॉन रस्किन ने मुस्कराते हुए कहा-'बहिन! यह वही धब्बों वाला रुमाल है। तुम देखो-जिस स्थान पर धब्बा था, उस स्थान पर कितना सुन्दर चित्र है!' युवती ने देखा-रुमाल पहले से भी अधिक सुन्दर बन गया था। उसका उदास चेहरा खिल उठा। जॉन रस्किन बोले-'धब्बा चित्र में बदल गया है।' समाधान है अहिंसा धर्म का काम है-धब्बे को चित्र में बदल देना। यदि धर्म अहिंसा के द्वारा धब्बों को चित्र में नहीं बदलता है तो वह वास्तव में धर्म नहीं रहता। अहिंसा ही एक ऐसा धर्म है, जो दुनिया के धब्बों को चित्र में बदल सकता है। आज विश्व-शान्ति की समस्या जटिल बनी हुई है। क्या कोई राष्ट्र उसे सुलझा सकेगा? क्या अमेरिका उसे समाधान देगा? या दुनिया की तीसरी-चौथी शक्ति प्रकट होगी और इस समस्या को सुलझाएगी? शस्त्र के बल पर विश्व शान्ति की समस्या कभी नहीं सुलझेगी। शस्त्रों के सहारे विश्व-शान्ति का सपना न कभी फलित हुआ है, न कभी फलित होगा। विश्वशान्ति की समस्या का एक मात्र समाधान है-अहिंसा। अहिंसा के सिवाय कोई विकल्प नहीं है। आज विश्व की महान् शक्तियों रूस और अमेरिका ने इस सचाई को स्वीकार किया है। आज शस्त्रों के विस्तार की नहीं, परिसीमन की दिशा में चिन्तन चल रहा है। यह स्वर प्रबल बन रहा है-शस्त्रों का परिसीमन हो। हमें यह मानना चाहिए-जाने-अनजाने दुनिया की महान शक्तियों ने अहिंसा के महत्त्व को स्वीकार किया है। अहिंसा का पहला उपन्यास वस्तुतः हिंसा अपनी मौत मरती है। हिंसा को कोई दूसरा मार नहीं सकता। झूठ अपनी मौत मरता है, कभी चल नहीं सकता। दुनिया में वही जिन्दा रह सकता है, जिसका आधार होता हैं। अशाश्वत के सहारे चलने वाला कभी ज्यादा चल नहीं पाता। एक दिन ऐसा आता है, आशाश्वत के घटने टिक जाते हैं। हिंसा, आक्रमण, शस्त्र—ये सारे नश्वर तंत्र हैं। ये कभी स्थायी नहीं रह सकते। हमें साधुवाद देना चाहिए गोर्बाच्योव को, रीगन और बुश को, जिन्होंने संसार के सामने अहिंसा का प्रथम उपन्यास लिखा। इतना सुन्दर उपन्यास कोई लेखक नहीं लिख सका। अहिंसा के इस उपन्यास का लेखन कोई धार्मिक आदमी भी नहीं कर सकता, क्योंकि सारी शक्ति उनके हाथ में है। जिनके हाथ में हिंसा की शक्ति है, वे अहिंसा की बात सोचें तब कुछ संभव हो सकता है। सारी शक्ति राज्य से जुड़ी हुई है। हिंसा की सारी शक्ति, संहारक शस्त्र उनके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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