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मोम के दांत और लोहे के चने
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माता-पिता बोले-'पुत्र! आज काफी चर्चा की है। एक साथ दिमाग पर ज्यादा भार नहीं डालना चाहिए। तुम्हारी भावना और तर्क हमने सुन लिए हैं पर क्या आज ही निर्णय करना जरूरी है? हमें भी थोड़ा सोचने का अवकाश दो
और तुम भी जरा अवकाश लो, ठंडे दिमाग से सोचो। कल फिर बात करेंगे, फिर सोचेंगे। निर्णय बहुत सोच समझकर लेना चाहिए। सहसा जल्दीबाजी में कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। सहसा विदधीत न क्रियां-इस सूक्त पर तुम भी मनन करो, हम भी मनन करेंगे। उस मनन से जो निष्कर्ष निकलेगा, वह विवेकपूर्ण होगा, संपदा की वृष्टि करने वाला होगा।'
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