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________________ मोम के दात और लोहे के चने २५१ दृष्टि के सामने जाने वाले के पैर वहीं थम जाते हैं और फिर सांप जो चाहे, सो कर सकता है। कठोर कर्म है गृहस्थी चलाना माता-पिता ने कहा-'बेटा! तुम जानते हो, एक लक्ष्य रखना, एक दृष्टि रहना, कितना कठोर काम है।' मृगापुत्र बोला-'मात-तात! आपने जो कहा, वह बिल्कुल ठीक बात है। मैं जानता हूं-साधुपन कठोर चर्या है। क्या गृहस्थ जीवन कम कठोर है?' यह कष्ट की बात साधु जीवन के लिए कही जाती है पर अगर तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो गृहस्थ का जीवन भी कम कठोर नहीं है। कितनी कठोर चर्या है गृहस्थ की। प्रातः उठता है और शाम को सोता है तब तक कोल्हू के बैल की भांति पिसता चला जाता है। यह शिकायत बनी रहती है-एक मिनट का समय मेरे पास नहीं है। उठता हूं, जल्दी-जल्दी नाश्ता कर दुकान जाता हूं। रात को आठ बजे आता हूं और आते ही रोटी खाता हूं, फिर सो जाता हूं। बीच में करने को कुछ बचता ही नहीं। आज के जमाने में गृहस्थी को चलाना तो बहुत कठोर कर्म है। चारों ओर भय का वातावरण, इतनी महंगाई और जटिल आर्थिक समस्याएं! ऐसी स्थिति में गृहस्थ साधु को धन्यवाद दे-आप बहुत कठोर चर्या कर रहे हैं या गृहस्थ साधु को धन्यवाद दे? यह शायद प्रश्न हो सकता है। गृहस्थ की समस्याएं भी कम नहीं हैं फिर भी एक मूर्छा ऐसी है, जिससे प्रभावित व्यक्ति यह मानता है-गृहस्थ जीवन सुविधापूर्ण है और साधु जीवन कठोर। समाज चलता है पूर्वाग्रह के कारण। पूर्वाग्रह होता है तो समाज चलता है और पूर्वाग्रह टूट जाए तो शायद समाज भी न चले। चले तो अन्यथा चले। एक मान्यता, धारणा और आग्रह बन गया, उस लीक पर सारे चलते चले जा रहे हैं। जो भी कष्ट आता है, सहते चले जा रहे हैं। अगर पुरानी धारणाएं और पूर्वाग्रह टूट जाएं तो शायद समाज की स्थिति भी अन्यथा बन जाए। मल्ल का काम : गुरु का काम मृगापुत्र बोला- 'माता-पिता! आपने मेरी दुर्बलताओं को समझा और मैं भी मानता हूं कि मैं दुर्बल हूं। पर जितना आप मानते हैं उतना दुर्बल नहीं हूं। अब मेरी दुर्बलताएं दूर हो रही हैं। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि मैं अपने लक्ष्य में सफल बनूंगा। मैं आपसे एक प्रार्थना करूं, आप बरा न मानें। बड़ों का काम छोटों की दुर्बलता को उकसाना, उन्हें दुर्बलता में ले जाना, उनमें हीन भावना पैदा करना है या उनमें उदात्त भावना पैदा करना है? बड़ों का काम क्या है? आपका काम यह है कि आप मुझे सहारा दें, प्रोत्साहन दें। आप यह प्रेरणा दें-बेटा! तुमने बड़ा लक्ष्य चुना है, अच्छा मार्ग चुना है। हम तुम्हारा सहयोग करेंगे, पर आपने ऐसा नहीं किया। आपने मल्ल का काम किया, गुरु का काम नहीं किया। मल्ल का काम होता है पछाड़ना और गुरु का काम होता है उठाना। आपने वही काम किया है पर मैं पूरे आत्म-विश्वास के साथ कहता हूं-मैं अपने लक्ष्य में सफल बनूंगा और अपनी दुर्बलता को छोडूंगा। दुर्बलताओं को भी मैंने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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