________________
२४८
महावीर का पुनर्जन्म
सेठ को जो करना था, वह कर लिया। सेठानी फटे-पुराने कपड़े पहन कर मेले में गई, नदी के मध्य चली गई। ऐसे गई कि फिर वापस आई ही नहीं।
यह एक मानवीय दुर्बलता है। मानवीय प्रकृति ही ऐसी है कि निषेध भी एक अभिप्रेरक तत्त्व बन जाता है, प्रेरणा बन जाता है।
मनोविज्ञान का एक विद्या के रूप में इन शताब्दियों में विकास हुआ है किन्तु मनोवैज्ञानिक तथ्य नए विकसित नहीं हुए हैं। न जाने कब से, शाश्वत काल से, मनुष्य में ये वृत्तियां रही हैं। जैसा आज हो रहा है, वैसा अतीत में भी होता रहा है। चाहे व्याख्या करना कोई जाने या न जाने। भय का चित्र
मृगापुत्र के माता-पिता ने मनोवैज्ञानिक तरीके से काम लिया। पिता बोला- 'पुत्र! तुम मुनि बनना चाहते हो पर देखो-तुम कौन हो? तुम बहुत सुकुमार हो और श्रामण्य का आचरण करना कितना कठिन है। तुम यह असंभव बात मत करो। तुम साधु भले बनो, हमें क्या आपत्ति है। तुम्हारी इच्छा है तो हम क्यों रोके पर पहले वस्तुस्थिति का अंकन तो करो। क्या तुम्हें पता है, यह साधुत्व क्या है? किसने तुम्हारे कान में फूंक मार दी? तुम साधु बनने की बात कर रहे हो पर इस बात को सोचो-साधुपन कितना कठोर होता है। वह मोम के दांत से लोहे के चने चबाने जैसा है। क्या मोम के दांत से लोहे के चने चबाए जा सकते हैं?'
अहिवेगंतदिट्ठीए, चरित्ते पुत्त! दुच्चरे।
जवा लोहमया चेव, चावेयव्वा सुदुक्कर।। माता-पिता ने भय का एक चित्र बना दिया। बिना तूलिका और बिना रंग के इतना भीषण चित्र बनाया, यदि कोई कमजोर होता तो उसे देखकर कांप उठता। अहं का उद्दीपन
_ पिता ने कहा-पुत्र! तुम राजकुमार हो, तुम्हें जनता पर शासन करना है। तुम्हारे पर स्वामित्व का भार है। तुम्हारा हाथ दाता जैसा रहेगा किन्तु याचक जैसा नहीं होगा। कौन दाता है और कौन याचक है, यह कहने और पूछने की जरूरत नहीं होती। हाथ की मुद्रा अपने आप सूचित कर देती है। तुम दाता हो पर साधु बनने पर तुम्हें भिक्षा मांगनी पड़ेगी। यह कापोती वृत्ति तुम्हें स्वीकार करनी पड़ेगी। घर-घर भिक्षा के लिए जाना पड़ेगा। क्या तुम्हारे जैसे राजकुमार के लिए यह उचित है?
माता-पिता ने उसके अहं को पकड़ा। अहं बहुत जटिल वृत्ति है। हिंसा, अब्रह्मचर्य, चोरी और परिग्रह की वृत्तियां जटिल हैं किन्तु अहंकार की वृत्ति इनसे कम जटिल नहीं है। पता नहीं, इसका महाव्रत क्यों नहीं बना? एक महाव्रत है विनम्रता का, अहंकार विलय का। बहुत सारी बातें छूट जाती हैं पर अहंकार की ग्रन्थि का भेदन नहीं होता। शायद सबसे ज्यादा साधुता में कोई कठिन बात है
तो वह है अहंकार की वृत्ति का विलय। बड़े-बड़े त्यागी-तपस्वी ब्रह्मचारी और Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org