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________________ २४० महावीर का पुनर्जन्म ४. यह शरीर दुःख और क्लेशों का भाजन है। ५. यह शरीर अशाश्वत है। एक दिन इस शरीर को छोड़कर चले जाना है। ६. यह मनुष्य जीवन असार है। यह व्याधि और रोगों का घर है। ७. यह संसार दुःख बहुल है। जन्म-दुःख है, मरण दुःख है, रोग और बुढ़ापा दुःख है। इस संसार में दुःख ही दुःख है, जिसमें जीव क्लेश पा रहे हैं। ८. मनुष्य, भूमि, घर, पुत्री, स्त्री, बांधव और धन-इन सबको छोड़कर ___ अवश होकर चला जाता है। जिस संसार की यह स्थिति है, उसमें मुझे क्षण का भी आनन्द नहीं मिल रहा है इसलिए मैं मुनि बनना चाहता हूं, विराग के पथ पर बढ़ना चाहता हूं इमं सरीरं अणिच्चं, असुई असुइसंभवं । असासयावासमिणं दुक्खकेसाण भायणं ।। असासए सरीरम्मि, रई नोवलभामहं। पच्छा पुरा व चइयचे, फेणबुब्बुयसन्निभे।। माणुसत्ते असारम्मि वाहीरोगाण आलए। जरामरणपत्थम्मि, खणं पि न रमामहं।। जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगा य मरणाणि य। अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसंति जंतवो।। खेत्तं वत्थ हिरण्णं च, पुत्तदारं च बंधवा । चइत्ताणं इमं देह, गंतव्वमवसस्स मे।। शरीर की नश्वरता मृगापुत्र ने इस सचाई का उद्घाटन कर दिया। यह शरीर क्षणभंगुर है। पानी के बुदबुदे की तरह है। किसी भी क्षण विलीन हो सकता है। यह एक दिन नष्ट होगा। दो वर्ष बाद, पांच वर्ष बाद या दस वर्ष बाद यह शरीर कभी भी छूट सकता है। इसका कोई भरोसा नहीं किया जा सकता। एक युवक ने कहा-'मेरा भाई बीस वर्ष का था। एक दिन रात को दो बजे उठा। वह एक गिलास पानी पीकर पुनः सो गया और सोया तो ऐसा सोया कि फिर कभी उठा नहीं।' पानी पिया तब तक जीवित था। सोकर उठने के समय मृत था। जहां शरीर की यह स्थिति है वहां कैसे भरोसा किया जा सकता है? ऐसी घटनाएं प्रतिदिन घटित हो रही हैं-अमुक व्यक्ति का तीस वर्ष की अवस्था में हार्ट फैल हो गया औ देखते ही देखते इस संसार से चला गया। शरीर की नश्वरता की जीवन्त साक्ष्य हैं ये घटनाएं। जब तक व्यक्ति अविद्या में रहता है तब तक वह सोचता है-मुझे शरीर में रति मिले, मुझे शरीर से सुख मिले, शरीर को सुख-सुविधा मिलती रहे। जब तक अविद्या का पर्दा है तब तक वह शरीर से परे की बात सोच ही नहीं सकता। जब अविद्या का पर्दा हटता है, व्यक्ति की चिन्तनधारा बदल जाती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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