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महावीर का पुनर्जन्म
सब कुछ ठीक दिखाई देता है, उसके बाद कुछ अन्यथा दिखाई देने लग जाता है। देखते-देखते ऐसी प्रकाश की किरणें फूटने लगती हैं कि सारी वस्तु बदल जाती है। बदलते-बदलते वस्तु भी गायब हो जाती है, कोरा आभामंडल ही शेष रह जाता है। जैसे व्यक्ति का आभामंडल होता है वैसे ही पदार्थों का भी अपना आभामंडल होता है। सम्मोहन का हार्द
मृगापुत्र ने अनिमेष दृष्टि से देखा, ध्यान केन्द्रित हो गया, वह चिन्तन की गहराई में उतरा, मन में विकल्प उठा-ऐसा कहीं देखा है, इस रूप को कहीं देखा है। वह उसी विकल्प में उलझ गया, सम्मोहित हो गया। सम्मोहित हुए बिना कोई व्यक्ति विशिष्टता को उपलब्ध नहीं हो सकता। आज सम्मोहन हल्के प्रयोगों के कारण काफी बदनाम हो चुका है पर वह है बहुत महत्त्वपूर्ण। एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है योग वाशिष्ट, जिसमें ऋषि वशिष्ठ ने राम को संबोधन दिया था, वह गहन आध्यात्मिक ग्रन्थ है। योग वाशिष्ट में लिखा है-भावना का प्रयोग किए बिना कोई व्यक्ति अध्यात्म की गहराइयों में नहीं जा सकता, अपने भीतर डुबकियां नहीं लगा सकता। भावना का ही दूसरा नाम है-सम्मोहन। किसी भावना से स्वयं को भावित कर लेना या सम्मोहित कर लेना। एक व्यक्ति अहम का जप करता है, वह अहम् मंत्र का बार-बार उच्चारण करता है। उच्चारण का अपना मूल्य है, किन्तु उच्चारण के साथ भावना का प्रयोग हो, व्यक्ति अर्हत् की अनुभूति करने लग जाए तो वह अर्हत् के रूप में बदल जाता है। यह योग का गुण-संक्रमण का सिद्धांत है। गरुड़ की भावना करने वाला गरुड़ की शक्ति का
और हाथी की भावना करने वाला अपने मन में उसके बल की अनुभूति करता है। भावना या सम्मोहन के प्रयोग का हार्द है जिसकी भावना करे, उसमें तन्मय या तल्लीन हो जाए। व्यक्ति केवल उसी भाव में लीन हो जाता है, शेष सारे विकल्प क्षीण हो जाते हैं।
मृगापुत्र उस अवस्था में चला गया। सारे विकल्प समाप्त हो गए, वह केवल इसी विकल्प में डूब गया-मैंने ऐसा रूप कहीं देखा है। उस सम्मोहित अवस्था में मृगापुत्र को जातिस्मृति ज्ञान उपलब्ध हो गया। जैसे ही पूर्वजन्म की स्मृति हुई, अतीत वर्तमान बन गया। किसी व्यक्ति से पूछा जाए-पांच दिन पहले क्या खाया? यदि उसे यह याद आ जाए और वह वस्तु का नाम बता दे तो मन में बड़ा हर्ष उत्पन्न होता है। बहुत कम लोगों को यह याद रहता है कि पांच दिन पहले क्या खाया था। यदि किसी को यह पूछा जाए कि एक वर्ष पहले क्या खाया था तो शायद उत्तर देना अत्यन्त मुश्किल हो जाए। व्यक्ति संभवतः इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाएगा। ग्रहण, धारणा और स्मृति
अतीत में लौटना बहुत कठिन होता है। वही अतीत याद रहता है, जिसकी धारणा मजबूत बन जाती है। ग्रहण, धारणा और स्मृति–इन तीनों की एक शृंखला है। पहला तत्त्व है-ग्रहण-अवग्रह कितना मजबूत हो रहा है। अवग्रहण सामान्य है तो धारणा कमजोर बनेगी। अवग्रह से ईहा और ईहा से For Private & Personal Use Only
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