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________________ राजर्षियों की परंपरा २२७ ४. चक्रवर्ती मघवा १३. राजा करकण्डु ५. चक्रवर्ती सनत्कुमार १४. राजा नमि ६. चक्रवर्ती शांतिनाथ १५. राजा नग्गति ७. राजा कुन्थु १६. राजा उद्रायण ८. चक्रवर्ती महापद्म १७. काशीराज ६. चक्रवर्ती हरिषेण ये सारे राजा अपने विशाल साम्राज्य को छोड़कर मुनि बने। राज्य का संचालन किया, उसे त्यागा और मुनि बन गये। ऐसा लगता है-प्राचीन काल में एक जीवन शैली विकसित रही है। यह रहस्य ज्ञात रहा है-कैसे जीना चाहिए? कैसे मरना चाहिए? वर्तमान स्थिति को देखकर यह कहा नहीं जा सकता कि आज का आदमी जीवन की शैली को जानता है या मरने की कला को जानता है। एक आदमी सत्तर-अस्सी या नब्बे वर्ष तक जीए और इतने वर्ष तक एक ही प्रकार का जीवन जीए, यह सचमुच आश्चर्य की बात है। एक सोलह वर्ष के लड़के से पूछा-'पढ़ाई करते हो।' उत्तर मिला-'नहीं।' मैंने पूछा-'इतनी जल्दी पढ़ाई क्यों छोड़ी।' 'व्यापार में लग गया।' अठारह वर्ष का युवक भी यही उत्तर देगा और बीस वर्ष या बाईस वर्ष का युवक भी यही उत्तर देगा। सोलह वर्ष का, अठारह या बीस वर्ष का होकर व्यक्ति जिस काम में लग गया वह जीवन भर उसी काम में लगा रहेगा। जब तक सांस लेगा, खाट नहीं पकड़ेगा तब तक उसे नहीं छोड़ेगा। यह जीना भी कोई जीना है। कार्यों का परिवर्तन होना जरूरी है। वह जीवन-शैली महत्त्वपूर्ण होती है, जिसमें कार्यों का काल के साथ निर्धारण होता है। कब क्या करना चाहिए, इसका बोध आवश्यक है। यह नहीं हो सकता कि सुबह नाश्ता शुरू करें तो शाम तक वही करते चले जाएं। यदि व्यक्ति ऐसा करने लग जाए तो क्या होगा? प्राचीन जीवन-शैली प्राचीन काल में जीवन की जो शैली थी, उसका थोड़ा-सा चित्रण कालिदास ने रघुवंश में किया है। रघुकुल के राजाओं की जीवन-शैली का विश्लेषण करे हुए लिखा गया शैशवेभ्यस्तविद्यानां, यौवने विषयैषिणाम् । वार्धक्ये मुनिवृत्तीनां, योगेनान्ते तनुत्यजाम् ।। रघुकुल के राजा शैशव में विद्या का अभ्यास करने वाले, यौवन में विषय की एषणा करने वाले, बुढ़ापे में मुनिवृत्ति को धारण करने वाले और अन्त में योग के द्वारा शरीर त्यागने वाले होते थे। जीवन की एक शैली रही है-पच्चीस वर्ष तक केवल अध्ययन, व्यापार-व्यवसाय नहीं। आत्मविद्या और लौकिक-विद्या-दोनों का संतुलित अध्ययन। उसके बात २५ वर्ष तक व्यापार-व्यवसाय करे, काम-भोग आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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