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दो भाइयों का मिलन
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का भव और सौधर्म कल्प देवलोक का भव। इनसे पहले कोई ऐसा जन्म आ गया है, ऐसी स्थिति आ गई है, जिससे हम उससे आगे के जन्मों को नहीं जान पा रहे हैं।
जातिस्मरण ज्ञान संज्ञी भवों को जानने वाला ज्ञान है। जहां अमनस्क का जीवन बीच में आ जाता है, वहां से आगे नहीं देखा जा सकता।
चक्रवर्ती ने कहा-'भाई! हम पांच जन्मों को देख रहे है। इन जन्मों में हम सदा एक-दूसरे के साथ रहे है। यह छठा भव है, जिसमें हम दोनों बिछुड़ गए। भाई चित्र! तूने स्नेह पाला ही नहीं और मुझसे अलग हो गया। अनेक जन्मों का यह साथ छूट गया।'
मुनि चित्र ने कहा- 'राजन्! तुम सोचो। अलग मैं हुआ या तुम हुए? अलग कौन हुआ? तुम निदान नहीं करते तो हम अलग नहीं होते। तुमने संयम पाला, साधना की और अन्त में निदान कर लिया। तीव्र आसक्ति और मूर्छा के साथ संकल्प कर लिया। इसका परिणाम है—हम बिछुड़ गए।'
चक्रवर्ती बोला-'भाई! मैंने निदान किया तो क्या बुरा किया? तुम्हें भी कर लेना चाहिए था निदान। मैंने निदान किया इसलिए चक्रवर्ती का सम्राज्य भोग रहा हूं। तुमने नहीं किया इसलिए जंगल में अकेले खड़े हो। न कोई नौकर है
और न कोई चाकर।' चक्रवर्ती का प्रलोभन
चक्रवर्ती ने कहा-'भाई! जो होना था, हो गया। अब हम मिल गए हैं। आओ। मेरे साथ चलो। इस साधुपन को छोड़ो। देखो! मेरे पास कितने विशाल, भव्य और रमणीय प्रासाद हैं! कितना वैभव है! कितनी ऋद्धि है! सुख-सुविधा के सारे साधन प्राप्त हैं। जो कुछ चाहिए, वह सब कुछ है। तुम इस साधु-वेश को त्याग दो। मैंने घोषणा की थी-जो अधूरे श्लोक को पूरा करेगा, उसे आधा राज्य दूंगा। तुमने उस श्लोक को पूरा किया है। मैं तुम्हें आधा नहीं, पूरा राज्य दे रहा हूं। तुम आओ, राज्य का उपभोग करो, मैं तुम्हारी सेवा में रहूंगा।'
कितना बड़ा प्रलोभन! इस स्थिति में मुनि चित्र ने जिस आंतरिकता का परिचय दिया, वह भी अद्भुत है। जो व्यक्ति अलौकिक सुख की अनुभूति में चला जाता है, उसे लौकिक सुख फीके लगने लग जाते हैं। कहा गया जिसने अलौकिक सुख को पा लिया है, उसे सोना पत्थर या मिट्टी के ढेले जैसा लगता है। सामान्य आदमी यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि ऐसा रूपांतरण भी व्यक्ति में हो सकता है किन्तु जब अलौकिक अवस्था जाग जाती है तब ऐसा घटित हो जाता है।
मुनि चित्र ने कहा- 'तुमने मुझे चक्रवर्ती का साम्राज्य भोगने का आमंत्रण दिया है। मैं तुम्हें सारे संसार के साम्राज्य का निमंत्रण दे रहा हूं, विश्व साम्राज्य का निमंत्रण दे रहा हूं। तुम्हें ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक तीनों लोकों का स्वामित्व मिलेगा। चक्रवर्ती के साम्राज्य से बड़ा है तीन लोक का साम्राज्य। तुम आओ, उस साम्राज्य का उपभोग करो।'
चक्रवर्ती ने कहा-'कहां है तुम्हारे पास तीन लोक का साम्राज्य?' Jain Education International
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