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________________ २२४ २३१ २३८ २४६ २५४ २५८ २६५ Www MM WWWWWWW २७१ २७५ २८१ २६४ ३०१ ३०८ ३५. राजर्षियों की परम्परा ३६. याद पिछले जन्म की ३७. जहां एक क्षण भी आराम नहीं मिलता ३८. मोम के दांत और लोहे के चने ३६. पथ और पाथेय ४०. अचिकित्सा ही चिकित्सा ४१. संवाद : नाथ और अनाथ के बीच ४२. मैं थामे हूं अपने भाग्य की डोर ४३. जब धर्म अफीम बन जाता है ४४. चौर्य से अचौर्य की प्रेरणा ४५. असहयोग का नया प्रयोग ४६. रूपान्तरण ४७. मिलन चांद और सूरज का ४८. शासन-भेद की समस्या ४६. दुष्ट घोड़े पर नियंत्रण कैसे? ५०. भटकाने वाले चौराहे ५१. शरीर एक नौका है ५२. प्रवचनमाता ५३. ब्राह्मण वह होता है ५४. भोगी भटकता है ५५. सामाचारी संतों की ५६. परम पौरुष एक आचार्य का ५७. मोक्षमार्ग ५८. अस्तित्ववाद ५६. उपयोगितावाद ६०. बिम्ब एक : प्रतिबिम्ब अनेक ६१. दर्शन नहीं तो कुछ भी नहीं ६२. संवेग से बढ़ती है धर्मश्रद्धा ६३. ढक्कन व्रत के छेदों का ६४. पढ़ें अपने आपको भी ६५. किसने कहा मन चंचल है? ६६. खोए सो पाए ६७. धागे में पिराई हुई सूई ६८. जीतो इन्द्रियों को ६६. बहिरंग योग ७०. अंतरंग योग ७१. वह अपने देश में चला जाता है ३१३ ३१७ ३२२ ३२८ ३३२ ३३६ ३४१ ३४७ ३५१ ३५८ ३६४ ३७० ३७७ ३८४ ३६१ ३६८ ४०० ४०५ ० C Ñ ४३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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