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________________ ८२ महावीर का पुनर्जन्म घटना नमि राजर्षि की नमि राजर्षि के शरीर में दाह ज्वर हो गया। भयंकर वेदना से शरीर तप उठा। वह राजा था, उसके पास सब कुछ था पर जब बीमारी आती है, व्यक्ति अत्यन्त व्याकुल बन जाता है। वेदना के क्षणों में एक उपचार चला चंदन के लेप का। महारानियां स्वयं चंदन घिस रहीं थीं। वे बड़ी शोकाकुल थी। राजा के स्वास्थ्य की कामना के साथ चंदन घिसती जा रही थीं। प्रासाद में महाराज सोए हुए हैं, मंत्री और वैद्य बैठे हैं। जब थोड़ी आवाज भी भयंकर लगने लग जाती है। राजा को वह आवाज बड़ी भयंकर लगी। राजा बोला-'मंत्रीवर! यह अप्रिय आवाज कहां से आ रही है?' मंत्री ने कहा-'महाराज! अभी उपाय करता हूं और दो मिनट के बाद ही आवाज आनी बन्द हो गई।' 'मंत्रीवर! यह आवाज किसकी थी?' 'महाराज! आपके लिए चंदन घिसा जा रहा था। कंगनों की टकराहट से आवाज आ रही थी। 'अब आवाज कहां गई? क्या चंदन घिसना बन्द कर दिया?' 'महाराज! चंदन तो घिसा जा रहा है। आपको आवाज अप्रिय लग रही थी इसलिए महारानियों ने बड़ी बुद्धिमत्ता से काम लिया। उन्होंने हाथ में सुहाग का प्रतीक एक-एक कंगन रखा, और सब कंगन निकाल दिए। जब कंगन एक ही रहा तब आवाज आनी बन्द हो गई।' इस एक बात ने नमि राजा को नमि राजर्षि के रूप में परिवर्तित कर दिया। वे प्रत्येकबुद्ध बन गए। इस एक घटना के साथ उनकी चेतना जाग गई। राजा बोल उठा-'नमि एकाकी भलो दोय मिल्यां दुःख होय।' बाहर जीएं : भीतर रहें झगड़ा दो में होता है, लड़ाई दो में होती है, टकराहट दो में होती है। दूसरे का प्रतिबिम्ब भी लड़ाई पैदा कर देता है। मैंने अनेक बार देखा है-कांच के पास चिड़ियां आकर बैठती है और प्रतिबिंब को देखकर चोंच मारती है। यह संघर्ष है दो होने का। जहां दूसरा आता है, संघर्ष शुरू हो जाता है। शेर ने कुएं के पानी में दूसरे शेर को देखा और छलांग लगा दी। यह प्रसिद्ध बालकथा है। जहां दूसरा आता है, लड़ाई और संघर्ष शुरू हो जाता है। अकेले में कुछ नहीं होता। आगम साहित्य में बतलाया गया जहां व्यक्ति अकेला होता है वहां न कोई शब्द होता है, न कोई झंझट, कलह, और संघर्ष होता है, कुछ भी नहीं होता। दूसरा मिलते ही सारी बातें शुरू हो जाती है। दो में सारी समस्याएं पैदा हो जाती है, यह एक सचाई है। समस्या यह भी है-अकेला रहने से व्यक्ति का काम नहीं चलता। प्रश्न हुआ-कौन-सा रास्ता अपनाया जाएं? सब एकलविहारी बन जाएं या समूहचारी रहें? व्यवहार के क्षेत्र में इस प्रश्न का कोई समाधान नहीं मिलता। निश्चयनय की शरण में जाने पर ही इसका समाधान उपलब्ध हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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