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________________ स्वतन्त्र व्यक्तित्व का निर्माण किए, सचाई की गहराई में गए, वहां जो देखा, उन्होंने कहा- जरा (बुढ़ापे) का विनाश हो जाएगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि अवस्था के साथ बूढ़ा नहीं होगा। इसका अर्थ है- बुढ़ापा सताएगा नहीं, बुढ़ापा दु:खद नहीं बनेगा। दुःख देने वाला बुढ़ापा समाप्त हो जाएगा। मृत्यु नष्ट हो जाएगी, इसका अर्थ यह नहीं कि मौत नहीं आएगी। मौत आएगी किन्तु सताएगी नहीं। मौत का भय नहीं होगा, कम्पन नहीं होगा, घबराहट नहीं होगी। मौत एक राक्षसी की मुद्रा में उपस्थित नहीं होगी। बहुत सहज, इच्छा-मृत्यु बन जाएगी। कायोत्सर्ग के द्वारा सब दुःखों से छुटकारा मिलता है। इसका अर्थ है-दु:खों से छुटकारा पाने का पहला कोई उपाय है तो वह है-कायोत्सर्ग। जिस व्यक्ति ने कायोत्सर्ग की साधना की, उस व्यक्ति ने सभी दुःखों की जड़ को हिला दिया। जैसे ही कायोत्सर्ग होता है, आदमी शिथिल होता है, अपनी अकड़-पकड़ को छोड़ता है, दुःखों की नींव हिलने लग जाती है, सारे दुःख छूटने लग जाते हैं। आयंबिल के बारे में भी बहुत सारी सचाइयां स्पष्ट हो चुकी हैं। एक अनाज खाने वाले व्यक्ति के शरीर में रसायन का परिवर्तन शुरू हो जाता है। कोई भी व्यक्ति महीनों तक केवल एक अनाज का प्रयोग करे, रसायन बदल जाएंगे। उसकी दूसरी दृष्टि जाग जाएगी। प्राकृतिक चिकित्सक कहते हैं, भोजन में एक से ज्यादा अनाज मत लो! एक से ज्यादा अनाज लेने का मतलब है पित्ताशय पर भार डालना और स्वास्थ्य के प्रति अन्याय करना, किन्तु अध्यात्म के क्षेत्र में तो यह बात कही गई-अनाज के साथ और कुछ भी नहीं, केवल अनाज। एक नया परिवर्तन होगा, शारीरिक दृष्टि से भी, मानसिक दृष्टि से भी और कुछ शक्तियों के जागरण की दृष्टि से भी। इसीलिए हजारों-हजारों तपस्वियों ने आयंबिल के लम्बे प्रयोग किए और वह आयंबिल का प्रयोग शक्ति-जागरण में सहायक बना। साधना के क्षेत्र में आज भी सैकड़ो-सैकड़ों उपाय और प्रयोग हमारे सामने बचे हैं। प्रश्न है-पराक्रम का। रास्ता भी हमारे सामने है। बदलने की प्रक्रिया हमारे सामने है। किन्तु प्रश्न है चलने का। जीवन विज्ञान से उपलब्धियां जीवन विज्ञान के क्षेत्र में ये तीन उपलब्धियां होंगी१. अपनी शक्तियों से परिचय । २. अपनी शक्तियों के परिचय से उपलब्ध विकास के मार्ग। ३. अनुशीलन और प्रयोग। अपनी शक्ति को जानें, प्रयोग की शक्ति को जानें और विकास के मार्ग को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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