________________
जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग रासायनिक परिवर्तनों के द्वारा जीन को बदलने की बात हो रही है। हमारे ध्यान में कोई रासायनिक प्रक्रियाएं नहीं हैं। हमारे पास न प्रोटीन हैं, न एसिड्स हैं और न दूसरे रासायनिक तत्त्व हैं। न आर० एन० ए०, न डी० एन० ए०, कोई भी नहीं है। फिर परिवर्तन की क्या बात करें ?
बदलना हमारे हाथ में है
परिवर्तन की बात को जिन लोगों ने अस्वीकार किया, उन्होंने सारी व्यवस्था को नियति की संज्ञा दे दी। हम नियत हैं। जो जैसा है, वैसा है। जो है, वह है । कोई परिवर्तन होने वाला नहीं है। परिवर्तन का सारा सूत्र नियति के हाथ में है। किन्तु पुरुषार्थवादी दर्शन ने इस नियति के दर्शन को स्वीकार नहीं किया। उनका सूत्र यह रहा कि हम बदल सकते हैं, कर्म को बदल सकते हैं, भाग्य को बदल सकते हैं। यदि शरीर- प्रेक्षा के द्वारा प्रत्येक कोशिका को, प्रत्येक सेल को, हम अपनी भावना से प्रभावित कर सकें तो अपने शरीर को भी बदला जा सकता है, ज्ञान और दृष्टि को भी बदला जा सकता है, आने वाले प्रवाह और भाग्य को भी बदला जा सकता है। यह सब हमारे हाथ में है।
६६
बदलाव के सूत्र
मनुष्य बहुत अच्छे ढंग से अपने आपको बदल सकता है। बदलने के लिए सबसे पहले उसे प्रकाश चाहिए। वह प्रकाश है- अंतर्दृष्टि, भीतरी प्रकाश । भीतरी प्रकाश की एक भी किरण फूट पड़ती है तो हमारी बदलने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। जब तक अंधेरा है, अनास्था है, अज्ञान है तब तक बदलने की बात नहीं हो सकती। सबसे पहली बात है हमारी आस्था बने कि मैं अपने आपको बदल सकता हूं। यह संदेह समाप्त हो जाए कि होगा या नहीं होगा, ऐसा कर पाऊंगा या नहीं कर पाऊंगा? जब तक यह संदेह रहेगा, तब तक कुछ नहीं होगा ।
जो व्यक्ति कुछ होना चाहता है, उसे सबसे पहले एक छलांग लगानी पड़ती है। जो छलांग लगाना नहीं जानता, वह विकास के क्रम को तेजी से आगे नहीं बढ़ा पाता । चींटी की चाल चलने वाला विकास के शिखर पर कैसे पहुंच सकता है ? इसके लिए तो बहुत छलांगें लगानी पड़ती हैं। खतरे भी मोल लेने पड़ते हैं। खतरों से, कठिनाइयों से घबराने वाला कोई भी व्यक्ति परिवर्तन नहीं कर सकता, बड़ा काम नहीं कर सकता। वह जिस स्थिति में है उस स्थिति में ही संतोष मानता रहता है। सबसे पहले खतरों को मोल लेने की भावना जागती है, वह संकल्प और आस्था जागती है, परिवर्तन शुरू होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org