________________
स्वतन्त्र व्यक्तित्व का निर्माण
५७ यदि मांग में कोई औचित्य है तो उसे स्वीकार भी कर लेना चाहिए । यह विवेक की शक्ति, यह अस्वीकार की शक्ति स्वतंत्र व्यक्तित्व का निर्माण है। यह लौकिक शिक्षा के द्वारा संभव नहीं। शिक्षा का जो आदर्शवादी दृष्टिकोण है, उसके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए-स्वतन्त्र व्यक्तित्व का निर्माण किन्तु वह आदर्शवादी दृष्टिकोण व्यावहारिक कितना बनता है, इसका दायित्व कोई नहीं लेता। प्राणशक्ति का विकास : एक महत्वपूर्ण खोज
___ एक उपदेश है- अस्वीकार करो, इंद्रियों की मांग को अस्वीकार करो, रुचि और इच्छा की मांग को अस्वीकार करो। विद्यार्थी को इतना बतला देना ही पर्याप्त नहीं होता कि तुम शिक्षा पाते हो, इसलिए तुम इच्छा की मांग को अस्वीकार कर दो। क्या वाचिक शिक्षा या उपदेश मात्र से यह संभव बन जाएगा कि वह अस्वीकार कर सके? अस्वीकार की शक्ति जागे बिना अस्वीकार हो नहीं सकता। सिद्धांत अच्छा है। हम सिद्धांत को जान लेते है; किन्तु सिद्धांत की क्रियान्विति शक्ति के बिना नहीं हो सकती। सबसे पहली बात है शक्ति। जरूरी है शक्ति की पूजा- शक्ति की आराधना। यह शक्ति की आराधना कोई बाहरी तत्त्व की आराधना नहीं है। अपने भीतर में सोई हुई शक्ति की पूजा करना और सोई हुई शक्ति की आराधना करना शक्ति का जागरण है। प्रत्येक व्यक्ति में शक्ति सोई हुई है। उस शक्ति को जगाना है। सबसे बड़ी बात वह नहीं, जो प्रेरित कर सके, बड़ी बात है जो जगा सके। लौकिक शिक्षा के पास शक्ति को जगाने का साधन हैमात्र बुद्धि को प्रेरित करना; विचार दे देना। विचार से शक्ति का जागरण कहीं होता होगा, सौ में एक व्यक्ति का हुआ होगा, किन्तु विचार शक्ति- जागरण का बहुत बड़ा साधन नहीं है। शक्ति के जागरण का साधन है- अनुभव। अनुभव जग जाता है तो शक्ति जाग जाती है। अध्यात्म के आचार्यों ने जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात कही, वह है प्राण-शक्ति का विकास। प्राण शक्ति का विकास होता है तो इच्छा शक्ति संकल्पशक्ति और एकाग्रता की शक्ति, सारी शक्तियां जाग जाती हैं। जब तक प्राणशक्ति का विकास नहीं होता, कोई शक्ति नहीं जागती। प्राणशक्ति और श्वास
आज बहुत बड़ी कठिनाई है प्राणशक्ति को जगाने की। एक कठिनाई है प्राकृतिक वातावरण की। इतना दूषित हो गया है हमारा प्राकृतिक वातावरण, इतने जहरीले तत्त्व उसमें मिल गये हैं, मनुष्य को इतना कम ऑक्सीजन मिलता है, इतनी कम प्राणवायु मिलती है, इतने कम प्राण-तत्त्व मिलते हैं कि प्राण-शक्ति को
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org