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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग क्या ? एक साधु तो कहता है कि इन चीजों को मत खाओ, छोड़ दो, कम खाओ, बार-बार मत खाओ, आसन करो, प्राणायाम करो, पर डॉक्टर का इनसे क्या वास्ता ? पर आज ऐसा लगता है कि साधुओं का बहुतं सारा काम डॉक्टर ही करने लग गए हैं। प्रभाव ही प्रभाव
इस दुनिया में फिर से आत्मानुशासन के लिए नया प्रस्थान शुरू हुआ है। इस प्रस्थान में प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्त्तव्य होता है कि वह जागरूक बने, जागे। आत्मानुशासन के प्रति जागे। प्रभावित न हो। हमें प्रभावित करने वाली बहुत बातें हैं और व्यक्ति बहुत प्रभावित होता है, हर घटना से प्रभावित होता है। यह अस्वाभाविक भी नहीं है, क्योंकि हमारा संबंध सबके साथ जुड़ा हुआ है। परिवार से संबंध होना बहुत स्थूल बात है। गहरे में जाकर देखें तो एक व्यक्ति को परिवार उतना प्रभावित नहीं करता जितना प्रभावित करता है सौरमंडल। बहुत प्रभावित होता है व्यक्ति सौरमंडल से ।
हमारी विराट् दुनिया! हम जिस पृथ्वी में रह रहे हैं, ऐसी पृथ्वी की बात छोड़ दें। हमारे पूरे सौरमंडल, हमारी पूरी नीहारिका जिसमें खरबों तारे हैं, ऐसी खरबों सौरमंडल की स्थितियां इस ब्रह्माण्ड में हैं। खरबों-खरबों सौरमंडल और प्रत्येक सौरमंडल में ऐसी नीहारिकाएं जिनमें खरबों-खरबों तारे, ऐसे तारे जो सूर्य से भी बड़े तेजस्वी और ताप देने वाले। इतनी बड़ी दुनिया में हम जीते हैं। कवच बनाकर नहीं जी सकते। हम प्रभावित होते हैं। चारों तरफ से प्रभाव आ रहे हैं। उन सारे प्रभावों से बचने का कोई उपाय यदि है तो वह है-भीतर से निकलने वाली रश्मियां। हमारे भीतर की अग्नि, हमारे भीतर का तेज, उसमें से जो रश्मियां निकलती हैं, वे रश्मियां ही हमें प्रभावों से बचा सकती हैं। अन्यथा उन प्रभावों से बचने का कोई उपाय नहीं है। प्रभाव से नहीं बच सकते तो आत्मानुशासन भी नहीं हो सकता। आत्मानुशासन का मतलब होता है बाहरी प्रभावों से बचना। आदमी कितना प्रभावित होता है ! हर कोई प्रभावित कर देता है। एक छोटा बच्चा भी प्रभावित कर देता है और एक बूढ़ा आदमी भी प्रभावित कर देता है। एक शब्द प्रभावित कर देता है और एक इशारा प्रभावित कर देता है। हम तो सारे प्रभावों के संक्रमणों के बीच में जी रहे हैं।
शिक्षा का महत्वपूर्ण उद्देश्य है-आत्मानुशासन का विकास और यह कार्य जीवन-विज्ञान की शिक्षा के द्वारा ही संभव हो सकता है । जीवन विज्ञान को
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