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जीवन विज्ञान-शिक्षा की अनिवार्यता
४७ है, वह भी दु:खी होता है। बुरा सोचने वाला भी दु:ख पाता है क्योंकि वह बुरे परमाणुओं से घिर जाता है। जिसके बारे में सोचते हैं, वह भी प्रभावित होता है। हम इन प्रथम श्रेणी के शस्त्रों को समाप्त करना चाहते हैं तो अध्यात्म- शिक्षा के बिना, जीवन विज्ञान के बिना हमारे सामने कोई भी दूसरा रास्ता नहीं है। हम बहुत बार भ्रांतियों में पलते हैं बाहरी निमित्तों को मिटाना चाहते हैं, बाहरी उपकरणों को समाप्त करना चाहते हैं वे बुरे तब बनते हैं जब उन्हें हमारा योग मिलता है। हम उन्हें चार्ज करते हैं, तब वे चार्ज होते हैं अपने आप में वे नेगेटिव हैं। उनमें कोई कर्तृत्व नहीं है, कर्तृत्व हमारे द्वारा आरोपित होता है। यदि शस्त्र में भी कोई क्षमता होती तो आज शस्त्रों का इतना बड़ा भण्डार होता कि दुनिया एक क्षण के लिये चैन से नहीं बैठ सकती। पर वे द्वितीय रेणी के शस्त्र- अणु- अस्त्र, हाइड्रोजन अस्त्र, उनका भण्डार अभी निष्क्रिय पड़ा है और इसलिए पड़ा है कि प्रथम रेणी के शस्त्र पूरे टकराए नहीं। जिस दिन उनमें थोड़ा पागलपन आया और वह प्रथम श्रेणी का शस्त्र जैसे ही टकराया, फिर पता नहीं दुनिया में क्या होगा? कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता। शायद भविष्यवाणी करने वाले भी मिलेंगे या नहीं। यह नहीं कहा जा सकता।
हम इस बात का अनुभव करें कि दुष्प्रयुक्त मन, दुष्प्रयुक्त वाणी और दुष्प्रयुक्त शरीर- इन तीन शस्त्रों को समाप्त किए बिना परिवार में भी सुख से नहीं रह सकते, समाज और राष्ट्र में भी सुख से नहीं रह सकते। सुखी या शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए जरूरी है जीवन विज्ञान की शिक्षा। उसके द्वारा वह शिक्षा पा सकते हैं, जिससे हमारा भाव-शस्त्र प्रथम श्रेणी का शस्त्र निष्क्रिय बने और हम मैत्री, शांति और सुख का जीवन जी सकें। मुक्ता खो गई
. आदमी झुका हुआ चल रहा है। केवल भारत में नहीं, पूरे विश्व में आदमी झुका-झुका चल रहा है। कुछ खोज रहा है। उसे यदि पूछा जाए-'झुके हुए क्यों चल रहे हो? तुमने क्या खो दिया?' उत्तर मिलेगा- 'अनुशासन की मुक्ता खो गई है। दूंढ़ रहा है, कहीं मिल जाए।'
आज सारे संसार में समस्या है- अनुशासन की। शिक्षा का उद्देश्य हैअनुशासन पैदा करना। अनुशासन पैदा नहीं हो रहा है। हर जगह मांग है, पुकार है कि अनुशासन आए, अनुशासन जागे। पर वह नहीं आरहा है, जाग नहीं रहा है।
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